अपने आपको जैन कहनेवाले अहमदाबाद के किसी जस्मीनभाई महेशभाई
शाह ने वहां के मेट्रोपोलियन मजिस्ट्रेट की अदालत में बहुत सारे बेबुनियाद आरोपों का
ठीकरा जिस प्रकार एक प्रकाण्ड विद्वान और आचार-विचार में कठोर, चारित्रनिष्ठ, प्रवचन प्रभावक और सम्पूर्ण जैन शासन के लिए गौरवपूर्ण व्यक्तित्व के धनी आचार्य
भगवन पर फोड़ने की कोशिश की है, वह अत्यंत
शर्मनाक है। यही नहीं इस व्यक्ति ने ही गुजरात उच्च न्यायालय में बिना किसी ठोस साक्ष्य
व आधार के सम्पूर्ण जैन समाज में होनेवाली दीक्षाओं को ही भयंकर क्रूरता की संज्ञा
दे दी है, यहां तक कि दीक्षार्थियों के माता-पिता
को भी इस क्रूरता में शामिल कर लिया है। और इनके उकसावे पर न्यायालय ने टिप्पणी की
है कि यदि माता-पिता ऐसी दीक्षा की इजाजत देते हैं तो सरकार को इन बच्चों का संरक्षक
बनकर इन्हें अपनी कस्टडी में ले लेना चाहिए, ताकि उनका सम्पूर्ण विकास हो सके। खास बात यह है कि जस्मीन ने दीक्षा में क्रूरता, बर्बरता अथवा छल-कपट का एक भी उदाहरण या सबूत प्रस्तुत नहीं
किया है।
जस्मीन का कहना है कि संसार को छोडने के लिए बच्चों को गुमराह
किया जाता है और आचार्यश्री मुख्य षडयंत्रकारी और जालसाजी के मास्टर माइण्ड हैं। इस
प्रकार के दुष्कृत्य द्वारा क्या जस्मीन शाह फर्जी गजट तैयार करनेवाले धर्म के धोखेबाज
जालसाज कुशल मेहता को बचाने की कोशिश कर रहा है? इसमें निर्दोष लोग व धर्माचार्य फंस जाएं और मुम्बई पुलिस ने तीन वर्ष की कठोर
जांच में जिस कुशल मेहता के ठिकानों से उसकी निसानदेही पर फर्जी दस्तावेज तैयार करने
का सारा साजोसामान बरामद किया है, जिसे
पुलिस ने गिरफ्तार किया है और इस समय जमानत पर छूटा हुआ है, क्या यह उस कुशल मेहता को बचाने की कोशिश का एक हिस्सा अथवा
षडयंत्र है? क्योंकि जस्मीन शाह ने अपनी फरीयाद
में कहीं पर भी कुशल मेहता व उसकी गिरफ्तारी का जिक्र नहीं किया है, इस प्रकार उसने तथ्यों को छिपाने का पूरा प्रयास किया है। उसने
महिला एवं बालकल्याण मंत्रालय के पत्र को तो प्रस्तुत किया, किन्तु चालाकी से यह छिपा दिया कि यह पत्र पुलिस को जिस जांच
के संदर्भ में मिला है, उसमें
कौन गुनहगार पाया गया है? क्या
गुजरात हाईकोर्ट को और उससे पूर्व अहमदाबाद के मेट्रोपोलियन मजिस्ट्रेट को जस्मीन शाह
ने तथ्य छिपाकर, अंधेरे में रखकर गुमराह करने का
प्रयास नहीं किया है? क्या इसके पीछे इसकी कोई
दुरभिसंधि अथवा चाल है?
क्या जस्मीन शाह एक तीर में दो निशाने साध रहा है? एक तरफ निर्दोष लोगों को फंसाना और जालसाज अपराधी को बचाना व
दूसरी तरफ 14 वर्ष की छोटी वय में दीक्षा लेकर
अपनी प्रतिभा, गुरु की सेवा, गुरु की कृपा, अपने अध्ययन, कठोर परिश्रम व तपस्या
और शुद्ध आचार-विचार के परिणाम स्वरूप प्रकाण्ड विद्वान बन जाने, कई शास्त्रों के लेखक व सम्पादक होने, मनोविज्ञान, चिकित्सा
विज्ञान और विभिन्न दर्शनों के विद्वान होने, इनके समुदाय का निरंतर विकास होने, जैनधर्म के प्रभावक आचार्य बन जाने के कारण इन्हें नीचा दिखाने का कुचक्र चलाना?
क्या यह सब अपनी मान्यता भेद का बदला लेने के लिए जस्मीन शाह
अकेले कर रहा है या उसके पीठबल के रूप में पर्दे के पीछे कुछ और भी ताकतें सक्रिय हैं? यह भी समाज के लिए गवेषणा का विषय है। कहीं इसकी आड़ में एक तिथि
- दो तिथि के मान्यता भेद का बदला तो नहीं लिया जा रहा है? या कहीं कुछ लोग आगामी साधु सम्मेलन के मद्देनजर आचार्यश्री की छवि धूमिल कर इसकी
आड़ में अपना खेल तो नहीं खेलना चाह रहे हैं? यदि ऐसा कुछ भी है तो यह बहुत ही आत्मघाती कदम है, जिस पर समूचे जिनशासन को हो रहे नुकसान के मद्देनजर चिंतन होना चाहिए।
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