सुख का अर्थी जीव पाप करने में कांपता है। क्योंकि वह
जानता है कि ‘मुझे
चाहिए तो सुख और मैं कर रहा हूं पाप, तो मुझे सुख कहां से नसीब होगा और दुःख आने से कैसे
रुकेगा?’ आपकी
संतान धर्म को न जाने, इसका आपको दुःख नहीं;
आप स्वयं भी धर्म को नहीं समझ पाए, इसका भी आपको दुःख नहीं और ऐसे लोग
यहां श्रद्धालु समझे जाते हैं। ऐसे श्रद्धालुओं को हमें धर्म सुनाना पडता है, यह क्या कम दुर्भाग्य का विषय है?
आप भगवान को नहीं पहचानते,
इसलिए भगवान की फजीहत करवा रहे
हैं। जिन्हें साक्षात् भगवान मिले थे, वे भी भगवान को नहीं पहचान पाए तो भव में भटके। हमें
तो भगवान साक्षात् मिले नहीं, उनके शास्त्रों के आधार से ही हमें तिरना है। लेकिन, आपने यह नहीं समझने का निर्णय किया
है, अतः
हमें बहुत समझाने की इच्छा नहीं होती। आपको सुखी बनाने की अपेक्षा समझदार बनाने के
लिए हमारा प्रयास है। सुखी लोग हमको भी संसार में खींच लेते हैं, जबकि समझदार हमारी रक्षा करते हैं।
मोह आपसे बहुत मजदूरी करवाता है और उसकी कदर भी नहीं करता। मोह अपनी इच्छानुसार सब
काम कराकर आपको नरक-तिर्यंच गति में धकेल देता है;
तो भी आपकी दृष्टि नहीं खुलती।
समझदार वह है जो दुनिया की बातों को कर्म पर छोडता है और धर्म की बात में
पुरुषार्थ को आगे करता है। इस जन्म में धर्म की बात में समझ-विवेक प्राप्त करना
बडे से बडा धर्म है। आज तक समझ रहित धर्म बहुत किया,
इसलिए आज तक संसार में लटकते रहे।
इसलिए धर्म के प्रति समझ पैदा करो। धर्म की सच्ची समझ पैदा हो गई तो भविष्य में
कल्याण हो सकेगा।-सूरिरामचन्द्र
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