प्रतिष्ठाहीन व्यापारी जैसे व्यापारी नहीं, लेन-देन संबंधी इज्जत बिना का
सेठिया जैसे सेठ नहीं,
सत्ता व नीति रहित अधिकारी जैसे अधिकारी नहीं, उसी
प्रकार धर्महीन आदमी,
वह आदमी नहीं है। दुनिया में योजनापूर्वक अधिक से अधिक पाप
तिर्यंच कर सकता है या मनुष्य? जंगल में शिकारी पशु तो दो-पांच मनुष्यों
को मारता है। सिंह यदि नगर में चला जाए तो पांच-पचास मनुष्यों को मारता है, परंतु
मनुष्य धारे तो योजनापूर्वक कितनों को मारेगा? जो मनुष्य योजनापूर्वक संसार
से मुक्त भी हो सकता है,
वही मनुष्य योजनापूर्वक सातवीं नरक में भी जा सकता है।
मनुष्यपन न आए तो मनुष्य भयंकर है। मनुष्य में मनुष्यत्व आ जाए तो वह देव जैसा
है। यह हजारों का पालक है,
रक्षक है और हजारों को शान्ति देने वाला है। हजारों आत्माओं
को स्वयं के संबंध से मुक्ति में भेज सकता है। ऐसे भी मनुष्य हैं कि जिनके सहवास
में गया, वह गया ही गया। तिर्यंच तो जो आदमी सामने आ जाता है, उसको
मारता है, किन्तु मनुष्य तो दूर से भी इरादापूर्वक मारता है। तिर्यंच शब्द के लिए कान
में कीलें ठोकने का शास्त्र में नहीं कहा है। किन्तु, कई
ऐसे मनुष्य हैं,
जिनके शब्द सुनने की अपेक्षा कान में कीलें ठोकना ही अच्छा
है, ऐसा शास्त्रों में कहा है। तिर्यंच को देखने से अकल्याण होना नहीं कहा है, किन्तु
कितने ही मनुष्य ऐसे हैं कि जिनको देखने से भी अकल्याण है, ऐसा
शास्त्रों में कहा है।
मनुष्य तारक भी है और डुबाने वाला भी है। जो कप्तान हजारों को बन्दरगाह पर
पहुंचा देता है,
वही कप्तान निश्चय करे तो हजारों को अधबीच में डुबा देता
है। सच्चा मार्ग प्रवर्तन करने वाला भी मनुष्य है और मिथ्यामार्ग प्रवर्तन करने
वाला भी मनुष्य है। हिंसा का प्रचार करने वाला भी मनुष्य है और अहिंसा का प्रचार
करने वाला भी मनुष्य है। दुराचारों को और सदाचारों को फैलाने वाला भी मनुष्य है, जगत
को हिंसक बनाने वाला भी मनुष्य है और जगत में दया का प्रसार करने वाला भी मनुष्य
है। स्वयं के स्वार्थ के लिए, हजारों के लिए हिंसा का मार्ग खोलने वाला
भी मनुष्य ही है।
एक कुत्ता भोंकता है अथवा काटता है। उसके लिए कुत्ते मात्र को मारने का आदेश
देने वाला भी मनुष्य है। कहते हैं कि ‘कुत्ते के भोंकने से निद्रा
का नाश होता है।’
यह तो भौंकता है, तब थोडे समय के लिए ऐसा होता
है, ऐसा उसने माना,
किन्तु इस मनुष्य की आवाज से कितने आदमियों को नींद नहीं
आती है, यह विचार किया है?
कुत्ता तो भौंकता है, तब ऐसा होता होगा, किन्तु
मनुष्य के स्वयं के तो नाम से कईयों को निद्रा नहीं आती है, इसका
क्या? इसका तो नाम भी कईयों पर अत्याचार करता है इसका क्या? जहरीला
जन्तु तो झपट में आ जाए तो काटता है, किन्तु ऐसे मनुष्य तो बिना ही
झपट में आए काटते हैं। सांड तो चक्कर में आ जाए तो सिंगडे से मारता है, किन्तु
मनुष्य तो दूर से भी गोली मारता है। इन सब के मद्देनजर धर्महीन मनुष्य, मनुष्य
नहीं है, ऐसा कहने में कोई बाधा है? कहना ही पडेगा कि नहीं! तो स्पष्ट है कि
एक धर्म से ही मनुष्य की महत्ता है। धर्म छोड दें, अहिंसा की भावना का
कचूमर निकाल दें,
भले की भावना चली जाए, फिर भी यह मनुष्य, मनुष्य
है, ऐसा कैसे कह सकते हैं? -सूरिरामचन्द्र
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