जुवेनाइल जस्टीस एक्ट, 2000 यानी किशोर न्याय (बालकों की देखरेख व संरक्षण) अधिनियम, 2000 की धारा 24 के प्रावधान इस प्रकार
हैं- "भीख मांगने के लिए किशोर या बालक
का नियोजन- 1. जो कोई भी भीख मांगने के प्रयोजनार्थ किसी किशोर
या बालक को नियोजित करता है या उसका प्रयोग करता है या करवाता है, एक ऐसी कालावधि के कारावास से दंडनीय होगा, जिसका विस्तार तीन वर्ष तक हो सकेगा और जुर्माने के लिए भी उत्तरदायी
होगा। 2. जो कोई भी एक किशोर या बालक का वास्तविक चार्ज रखते
हुए या उस पर नियंत्रण रखते हुए उपधारा (1) के अधीन दंडनीय अपराध को कारित करने के लिए दुष्प्रेरित करता है, एक ऐसी कालावधि के कारावास से दंडनीय होगा, जिसका विस्तार एक वर्ष तक हो सकेगा और जुर्माने के लिए भी उत्तरदायी
होगा।"
यदि धारा-24 को सूक्ष्मता पूर्वक जस्मीन शाह के आक्षेप के प्रकाश में देखें तो उक्त अपराध भी
किसी भी प्रकार घटित होना नहीं माना जा सकता है, क्योंकि यदि सम्पूर्ण धारा-24 को देखा जाए तो यह
अपराध उस दशा में बनता है, जब कोई माता-पिता या संरक्षक भीख मांगने के प्रयोजन
से अपने बच्चे को कहीं नियोजित कर देता है। जस्मीन शाह ने कभी किसी सार्वजनिक स्थान
पर बाल साधु को भीख मांगते हुए देखा है? क्या उसने कहीं यह देखा है कि बालदीक्षित साधु को कहीं भीख मांगने के लिए नियोजित
किया है? जस्मीन शाह स्वयं अपने आपको जैन कहता है तो वह जिन
किन्हीं भी साधुओं को मानता है, क्या वे किसी सार्वजनिक
स्थान पर, बस स्टेण्ड, रेलवे स्टेशन, मन्दिर के बाहर अन्य भिखारियों की कतार में, होस्पिटल के बाहर या किसी चौराहे पर भीख मांगते हैं? या किसी बाल साधु को ऐसा कहीं करते हुए देखा है?
यह सही है कि जैनधर्म में साधुओं द्वारा वही भोजन
स्वीकार किया जाता है जो उनके लिए विशिष्ट तौर पर नहीं बना हो और जो गृह स्वामी द्वारा
दिया जाता हो। लेकिन जस्मीन शाह ने कभी जैन साधुओं को अपने आपको लाचार, कमजोर, भूखा बताकर भीक्षा
लेते हुए देखा है? या जस्मीन शाह ने कभी किसी जैन साधु को "भिक्षाम् देहि" ऐसा कहकर अथवा अन्य भिखारियों की तरह हाथ जोडकर गिडगिडा कर भीख मांगते हुए देखा
है?
या लोग जैन साधु को बहुत ही अनुनय-विनय कर के आहार
देते हैं और जिनसे जैन साधु आहार ले लेते हैं, वे अपने आपको धन्य व कृतार्थ समझते हैं?
जुवेनाइल जस्टीस एक्ट की धारा-2 (बी) में भी भीख मांगने की परिभाषा दी हुई है, जो किसी प्रकार से जैन साधु की गोचरी पर लागू नहीं होती।
जैन साधुओं या बाल साधुओं द्वारा जो भोजन लिया जाता
है,
वह अपनी धर्म प्रणाली के अनुसार लिया जाता है। इस
भोजन ग्रहण पद्धति को किसी भी प्रकार से भिक्षावृत्ति की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता
है।
दीक्षार्थियों को जैन धर्म का गहन अध्ययन करवाया
जाता है, उन्हें धार्मिक व नैतिक शिक्षा दी जाती है। अतः
जो संघ इस प्रकार के धार्मिक कार्यों में लिप्त हों, ऐसे संघ में किसी बालक को भेजना "भिक्षावृत्ति में नियोजित" करने की श्रेणी
में नहीं रखा जा सकता है। विधायिका का ऐसा आशय इस प्रकार के "भोजन ग्रहण पद्धति" को भिक्षावृत्ति की श्रेणी में रखने का नहीं है।
इस प्रकार जुवेनाइल जस्टीस एक्ट की कोई धारा बालदीक्षा
पर लागू नहीं होती। इस एक्ट की प्रस्तावना और प्रावधानों से भी स्पष्ट होता है कि यह
एक्ट किसी भी प्रकार से बालदीक्षा पर कतई लागू नहीं होता है।
जस्मीन शाह ने जिस प्रकार अहमदाबाद के मेट्रोपालियन
मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश फरीयाद में, गुजरात उच्च न्यायालय में और उसके बाद पालीताणा में मोक्षांग की दीक्षा रोकने के
लिए जुवेनाइल जस्टीस एक्ट का हल्ला मचाया है और न्यापालिका व कार्यपालिका को गुमराह
करने का प्रयास किया है, यह उसका कृत्य अपने आप में अपराध की श्रेणी में
आता है, यह उसे समझना चाहिए।
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