इन्द्रियों को जीतने
के लिए मन-शुद्धि की आवश्यकता होती है। अतः कहा है कि ‘मन एव मनुष्याणां
कारणं बंधमोक्षयोः’। स्वतंत्र छोडा हुआ मन बंधन का कारण है और नियंत्रण
में रखा हुआ मन मुक्ति का कारण है। जिस व्यक्ति का मन स्वच्छंद होता है, वह पाप करता है, जिससे वह आत्मा का
अहित करता है। जो व्यक्ति अपने मन पर नियंत्रण कर लेता है और उसे सर्वज्ञ की
आज्ञानुसार चलाता है, वह व्यक्ति अपना तथा दूसरों का कल्याण कर सकता है।
सिंह मनुष्य से अधिक
बलवान और हिंसक होता है, फिर भी मनुष्य उस पर नियंत्रण कर लेता है। वह उस पर
नियंत्रण कैसे कर लेता है? पहले वह उसे पिंजरे में बन्द करता है। वह पिंजरा भी
देवदार की साधारण लकडी का नहीं होता, अपितु मजबूत लोहे का
बना होता है। उस पिंजरे में बन्द करने पर सिंह उछल-कूद करता है और उसमें से निकल
भागने का पयत्न करता है, पर वह निकल नहीं सकता, अतः पिंजरे में ही
चक्कर लगाता रहता है। अन्त में थक कर वह पिंजरे में एक स्थान पर बैठ जाता है।
तत्पश्चात् नियंत्रक उसके पास आकर उसे कहता है, ‘कहां गया तेरा बल? बल हो तो दिखा!’ फिर वह उसे हंटर
मारकर खडा करता है। इस तरह करते-करते वह उसका बल नष्ट कर डालता है। फिर वह
नियंत्रक (प्रशिक्षक) उसे खाने के लिए कुछ नहीं देता, उसे वह भूखा रखता
है। फिर उसे थोडा-सा भोजन देकर उससे अपनी इच्छानुसार कुछ क्रियाएं करवाता है।
क्रियाएं सीखने के पश्चात वह उसे पिंजरे से बाहर लाता है, लेकिन सावधानी बराबर
रखता है। काम पूरा होने पर तो वह पुनः उसे पिंजरे में ही बंद करता है, क्योंकि आखिर तो वह
जंगली और हिंसक ही है। इसी तरह का नियंत्रक बनकर हमें सिंह की तरह अपने मन पर
अंकुश रखना है।
हमें मन की इच्छा के
आधीन नहीं होना है, अपितु उसे अपनी इच्छा के आधीन बनाना है। मन जो कुछ
मांगे, वह उसे नहीं देना है, बल्कि हम जो उसे
देना चाहें, वही उसे देना है। इस प्रकार मन पर संयम-नियंत्रण रखने
की आवश्यकता है। मन पर अंकुश रखने के लिए उसे तृष्णा से सदा दूर रखना चाहिए। मन को
वश में करने का एक मार्ग यह है कि अच्छी और बुरी इच्छा की हमें परीक्षा करनी
चाहिए। जो-जो बुरी इच्छाएं हैं, उन्हें पूरी नहीं करनी चाहिए और अच्छी इच्छाओं को
पूरा करने का प्रबल पयत्न करना चाहिए। केवल साधुओं को ही नहीं, गृहस्थियों को भी
सुखी होना हो तो उन्हें अपने मन पर अंकुश रखना चाहिए। मनुष्य को किसी भी तरह बुरी
इच्छा को दबाना और अच्छी इच्छा के अनुसार चलने का प्रयत्न करना चाहिए। जिन ज्ञानी
पुरुषों ने मानव जीवन अमूल्य बताया है, उन्होंने मन को वश
में रखने के अनेक उपाय भी बताए हैं।-सूरिरामचन्द्र
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