मनुष्य-जन्म पाना
मात्र प्रसन्नता की बात नहीं है। पशु न बनकर हम मनुष्य बने, मात्र इतने से ही हम
प्रसन्न क्यों हों? प्रसन्नता तो तब होनी चाहिए, जब हम में सच्ची
मानवता आ जाए। सरकार ने भी पशुओं के लिए कानून नहीं बनाए। पशु यदि अपने सिर से
किसी को प्रहार करे तो उसकी कोई शिकायत नहीं चलेगी और आप यदि किसी को घूंसा भी
मारें या धमकी-गाली भी दें तो आपके खिलाफ जरूर शिकायत दर्ज होगी। इसका कारण क्या? इसका कारण यही है कि
आपको मनुष्य माना है। सरकार भी आपका पद ऊंचा मानती है। मनुष्यों में अधिक योग्यता
देखकर ही सरकार ने उनके लिए ही कानून बनाए हैं। पशुओं को सरकार ने बुद्धिहीन माना
है, इसलिए वह अपने सिर से किसी को प्रहार करे तो भी उसके विरूद्ध शिकायत कोई नहीं
सुनेगा। कानून बनाने वालों ने मान लिया है कि पशु अज्ञानी है। मनुष्यों में ज्ञान
आने से उनकी योग्यता और उत्तरदायित्व बढ गया है।
जंगल में रहने वाला
शिकारी हिंसक पशु लोगों का उतना संहार नहीं करता, जितना संहार क्रोधी, हिंसक बना हुआ एक
मनुष्य करता है। असंख्य हिंसक प्राणी मिलकर भी उतना नुकसान नहीं करेंगे, जितना एक अधम मनुष्य
कर सकता है; क्योंकि मनुष्य की अपेक्षा पशु बुद्धिहीन होने के
कारण वह योजना पूर्वक संहार करने की स्थिति में नहीं है। मनुष्य में बुद्धि आ जाने
के कारण उसका परिणाम भयंकर हुआ है। किसी एक आत्मा को कोई शक्ति देने से पहले उसकी
योग्यता का विकास होना चाहिए। कुपात्र को प्राप्त शक्ति विनाश करेगी। पूर्व पुण्य
के योग से मानव भव मिला है। मानव भव में दिव्य-शक्ति से भी ऊंची शक्ति है।
सर्वोच्च शक्ति प्राप्त हुई है। उस शक्ति से हमें विनाशक बनना है या रक्षक? यह आपके हाथ में है।
आजकल ‘हम कौन हैं’ यह भावना प्रधान बन
गई है। आप कोई भी हैं, पर ‘आपने यहां आकर किया क्या’, यह कोई नहीं पूछता।
आज ‘मैं और मेरा’ की हवा चली है, पर उस हवा के झोंके
में घिरे रहने से लाभ नहीं है, बल्कि निश्चित रूप से हानि ही है। अतः अपने आपको
भाग्यशाली और सर्वोच्च मानने से पहले अपनी करनी का जरूर विचार कर लीजिए। ‘मैं कौन?’ ‘मुझे जानते हो?’ ऐसे अहंकार सूचक
प्रश्न मत पूछिए, ऐसी धमकियां मत दीजिए; बल्कि इसके विपरीत
अपने आप से पूछिए कि ‘आपने किया क्या है?’ आपका अगला भव क्या
होने वाला है? उसके लिए आपने कोई तैयारी की भी है कि नहीं? इसके बिना
आत्म-शुद्धि और आत्म-कल्याण होने वाला नहीं है। यदि आपने यह सोचा कि मौत का कोई
भरोसा नहीं है और मुझे अपना अगला जन्म सुधारना है, तो आप निश्चित ही
रक्षक बन जाएंगे, लेकिन यदि आप अहंकार में ही झूमते-झूलते रहे तो आप
भक्षक के रूप में ही अपना यह जन्म भी बिगाडेंगे और अगला जन्म भी बिगाडेंगे।-सूरिरामचन्द्र
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