धन के वश में होने
वाले धनी मनुष्यों पर व्याधियों की दृष्टि भी ठिठक जाती है। व्याधियां प्रायः
धनवानों को ही पसन्द करती हैं, यह बात सत्य है। ये लोग तुच्छ और अपथ्य खाद्य
पदार्थों का सेवन करते हैं, जिससे उन्हें अनेक व्याधियां सताती हैं। धनी लोग खाने
के समय ही खाते हैं या हर समय खाना-पीना चलता ही रहता है? धनवान मनुष्य जीवन
निर्वाह हेतु और शारीरिक स्वास्थ्य की दृष्टि से खाते-पीते हैं अथवा जीभ के स्वाद
के लिए खाते-पीते हैं? उन्हें तले-गले, गरिष्ठ एवं मसालों
से युक्त स्वादिष्ट खाद्य-पदार्थों की चाह होती है। मौज-शौक की वस्तुओं का उपयोग
एवं उपभोग प्रायः धनी लोग ही करते हैं।
धनी लोगों को भूख न
हो तो भी वे खाते हैं। वे कभी यह तो ध्यान ही नहीं रखते कि कडाके की भूख लगने पर
ही खाना चाहिए। फिर भक्ष्याभक्ष्य का विवेक रखे बिना स्वाद के वशीभूत होकर वे अभक्ष्य
भी खा लेते हैं। ऐसे मनुष्य फिर अनेक व्याधियों के शिकार होकर दुःखी होते हैं।
उनमें से कुछ तो ऐसे जो खाकर दुःखी होते हैं और कुछ ऐसे भी हैं जो खाए बिना दुःखी
होते हैं। किसी न किसी तरह वे धनी लोग दुःखी होते हैं।
जो धनी लोग कृपण
होते हैं, वे इस तरह का भोजन करते हैं कि उनके लिए कहना पडता है
कि वे भूखों मरते हैं। जो धनी लोग विलासी होते हैं, वे ऐसा भोजन करते
हैं कि वे रोगों को निमंत्रण देते हैं, यह कहना पडता है।
कृपण लोग स्वयं खाते भी नहीं और किसी को खाने भी नहीं देते। विलासी लोग खा-खाकर
बीमारियों से ग्रस्त होते हैं। अतः धनी मनुष्यों का भोजन प्रायः तुच्छ, तामसिक और अपथ्य
कहलाता है। रसना के स्वाद के अधीन होकर भी तुच्छ एवं अपथ्य भोजन किया जाता है और
कृपणता के कारण भी तुच्छ एवं अपथ्य भोजन किया जाता है।
खान-पान के संबंध
में धनी एवं निर्धनों के दृष्टिकोण में काफी अन्तर होता है, यह आपको ज्ञात है
क्या? निर्धन क्यों खाते हैं? वे अपनी क्षुधा को शान्त करने के लिए खाते हैं और
क्षुधा की ज्वाला शान्त करने के लिए निर्धन किस तरह का भोजन पसन्द करते हैं? वे ऐसा भोजन पसन्द
करते हैं, जिससे क्षुधा की ज्वाला शान्त हो सके और शरीर बलवान
हो सके। उनमें से भी जो निर्धन मनुष्य संतोषी स्वभाव के होते हैं, उनकी तो बात ही
भिन्न है। वे लोग न तो अजगर की तरह खाते हैं और न ही वे अपथ्य पदार्थ ही खाते हैं।
लक्ष्मी के दास अविवेकी धनी लोग जीभ के स्वाद को संतुष्ट करने के उद्दश्य से खाते
हैं। यद्यपि वर्तमान समय में तो निर्धन एवं मध्य वर्ग के मनुष्यों में भी खान-पान
संबंधी अनेक कुटेव उत्पन्न हो गई है, जिनके फलस्वरूप वे
भी व्याधिग्रस्त होकर पीड़ित रहते हैं; परन्तु निर्धन
संतोषी मनुष्य प्रायः ऐसा भोजन करते हैं, जिससे उनका शरीर
रोग-ग्रस्त न होकर उलटा हृष्ट-पुष्ट हो।-सूरिरामचन्द्र
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