शनिवार, 29 दिसंबर 2012

क्या वे झगडालू आचार्य थे?(1)


जिन शासन के विरोधी, मिथ्यामति, दम्भी, शीथिलाचारी और समाज को मनमाने ढंग से हाँकने वाले स्वार्थी लोग जैन शासन सिरताज धर्मयौद्धा व्याख्यानवाचस्पति पूज्य आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा को जिद्दी और झगडालू आचार्य कहते थे, क्योंकि वे हमेशा सत्य, न्याय और नीति के लिए, जिन-सिद्धान्तों की सही-सच्ची व्याख्या के लिए, सही साध्वाचार के लिए अड जाते थे। गलत बात उन्हें बर्दाश्त नहीं थी और गलत के लिए उनकी काफी तल्ख टिप्पणियां होती थी, जो विरोधियों को ही नहीं, अपितु किसी भी इंसान को जकझोर कर रख देती थीं। उन्होंने इस बात की कभी यत्किंचित भी परवाह नहीं की कि वे अकेले पड जाएंगे या उनका कोई साथ देगा अथवा नहीं देगा। उन्हें परवाह थी तो केवल जिनाज्ञा की, अपनी साधुता की, उस पर सबकुछ कुर्बान। उनका स्पष्ट मंतव्य था कि यदि संसार के साथ चलना है तो फिर संयम की जरूरत ही कहां? मरी मछलियां ही बहाव के साथ बहती है।

लीक-लीक गाडी चले, लीक ही चले कपूत ।

तीनों लीके न चले साधु, सिंह, सपूत ।।

संसार के बहाव, धारा के साथ तो हर कोई चलता-बहता है। धारा के विपरीत चलकर अपना एक अलग मुकाम बनाने वाले, अपनी अलग पहचान बनाने वाले बिरले ही होते हैं। इन्हीं में एक थे पूज्यपाद आचार्यप्रवर श्रीमद् विजय रामचन्द्रसूरीश्वर जी महाराजा।

बीसवीं सदी में धार्मिक क्षेत्र के महानायक रहे, सकल जैन संघ में व्याख्यान के विषय में अद्वितीय कोटि की अधिकारपूर्ण क्षमता और श्रेष्ठता प्राप्त करने वाले, हिंसा-अहिंसा के विवेक-व्याख्या एवं आचरण में तब के राजनीतिक पुरोधा व देश की स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणीय नेता मानेजाने वाले श्री मोहनदास करमचन्द गांधी को भी परास्त कर देने वाले स्वनामधन्य, व्याख्यान वाचस्पति पूज्यपाद आचार्यप्रवर श्रीमद् विजय रामचन्द्रसूरीश्वर जी महाराजा जब गरम होते, तब ऐसे गरम होते कि एक भी गलत बात उनके सामने टिक नहीं सकती थी। लेकिन, उनका यह ताप हृदय का नहीं, केवल वाणी का हुआ करता था और उसका परिणमन हित में ही होता था। उनके शब्दों की कडुवाहट में भी करुणा का ही दर्शन होता और प्रत्येक वचन में विवेकपूर्ण करुणा का स्पंदन दिखाई देता। कभी भी उनका हृदय या दिमाग गरम नहीं होता था। हृदय और मन तो हमेशा अत्यंत शान्त ही रहते थे। तभी तो इतना बडा उत्तरदायित्व निभाते हुए भी कभी भी उन्हें मन या हृदय की अशान्ति के कारण, आवेग के कारण होने वाले एसीडिटी, रक्तचाप (बीपी) या हृदय के कोई रोग हुए नहीं थे। (क्रमश:)

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