सोमवार, 10 दिसंबर 2012

आपके लिए पुरुषार्थ का अवसर


ग्रंथिदेश को प्राप्त करने योग्य और उसके साथ ही श्री जिनशासन में उपदिष्ट श्रुत-चारित्रात्मक धर्म को द्रव्यरूप से भी अमुक अंश में प्राप्त करने योग्य भाग्यशालिता को पाए हुए जीव, यदि चाहें तो पुरुषार्थ फाड कर सम्यग्दर्शनादि आत्म-गुणों को प्रकट करने में समर्थ बन सकते हैं; ऐसा उनके लिए यह अवसर है। ऐसी भाग्यशालिता को पाए हुओं के लिए अर्थात् ग्रंथिदेश पर आकर द्रव्य से श्री जिन धर्म के आचरण को प्राप्त आत्माओं के लिए पुरुषार्थ करने का यह अवसर है, ऐसा कहा जा सकता है। यहां आया हुआ जो कोई जीव पुरुषार्थ करने के लिए तत्पर बने तो वह जीव, अनादिकाल से संसार में परिभ्रमण करते हुए आज तक जैसी सिद्धि प्राप्त नहीं कर सका, वैसी सिद्धि को प्राप्त कर सकता है।

असंख्यात काल तक ग्रंथिदेश पर टिकने के बाद भी वह जीव यहां से गिर सकता है और ग्रंथिदेश योग्य कर्मस्थिति से अधिक कर्मस्थिति को उपार्जित कर सकता है। अथवा ऐसा भी कहा जा सकता है कि ग्रंथिदेश पर आया हुआ जीव यदि पुरुषार्थ नहीं कर पाता और प्रगति नहीं कर पाता तो वह जीव अंत में असंख्यात काल में पुनः गिरे बिना नहीं रहता। इसलिए, ऐसे अवसर पर आपको विशेष सावधान रहने की आवश्यकता है।

यह बात भी है कि ग्रंथिदेश पर आया हुआ जीव श्री जिनशासन में उपदिष्ट श्रुत चारित्रात्मक धर्म के द्रव्याचरण को प्राप्त करे ही, ऐसा नियम नहीं है। ग्रंथिदेश पर आ जाने पर भी जीव श्री जिनशासन में उपदिष्ट श्रुत चारित्रात्मक धर्म के द्रव्याचरण को न पा सके, यह भी संभव है।

ग्रंथिदेश पर आकर श्री जिनशासन कथित श्रुत-चारित्रात्मक धर्म के द्रव्याचरण को प्राप्त जीव भी प्रगति ही करते हैं, ऐसा नियम नहीं है। अभव्य और दुर्भव्य भी श्री जिनशासन द्वारा उपदिष्ट श्रुत-चारित्रात्मक धर्म के द्रव्याचरण को प्राप्त कर सकते हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि जीव ग्रंथिदेश को पाकर और जिनशासनोपदिष्ट श्रुत-चारित्रात्मक धर्म के द्रव्याचरण को पाकर भी प्रगति करने वाला नहीं हो और परिणामतः पीछे हटने वाला बने, यह भी संभव है।

इससे यह बात बहुत स्पष्ट हो जाती है कि श्री जिनशासनोपदिष्ट श्रुतचारित्रात्मक धर्म के द्रव्याचरण को पाए हुए जीवों को तो बहुत सावधान बन जाना चाहिए। क्योंकि, प्रगति साधने की इच्छा हो तो यह एक बहुत ही सुंदर अवसर है। यदि इस अवसर को गंवा दिया तो ऐसा अवसर पुनः कब प्राप्त होगा, यह ज्ञानीजन ही कह सकते हैं। परन्तु, सामान्य रूप से यह कहा जा सकता है कि ऐसा अवसर गंवा देने वाला जीव, ऐसा अवसर बहुत लम्बे काल तक पुनः प्राप्त नहीं कर पाए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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