शनिवार, 22 दिसंबर 2012

कल से जानेंगे सुरि राम को


प्रिय भाइयों, बहिनों, मित्रों!

पिछले लगभग 11 माह से आप हमारे द्वारा प्रेषित मेल, नवभारत टाइम्स में हमारे ब्लॉग, गूगल पर हमारे ब्लॉग, ट्विटर, गूगल+, फेसबुक पर हमारी पोस्ट, फेसबुक में भी अलग-अलग पाठकों के ग्रुप में प्रेषित हमारी पोस्ट के माध्यम से जिन आचार्य भगवन् श्री रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा के विचार पढ रहे थे, उनके विचारों को पसन्द किया, उनकी साफगोई, उनकी स्पष्टवादिता, उनका शास्त्रीय ज्ञान, उनकी प्रवचन शैली कोई सामान्य बात नहीं है और उनका पूरा गुणगान करना मुझ जैसे सामान्य, अकिंचन प्राणी के बस में भी नहीं है। वे तो शारीरिक रूप से आज इस संसार में नहीं है, पर उनके व्यक्तित्व और कर्तृत्व की झलक आज भी उनके प्रवचन साहित्य में, उनके शिष्यों में, उनके समुदाय में देखने को मिलती है, जितना कुछ आज दृष्टव्य है, उनकी हस्ती, उनकी सख्सियत निश्चित ही उससे कई गुना महान थी।

मैं स्वयं दो वर्ष पूर्व ही उनके समुदाय और उनके साहित्य के सम्पर्क में आया और आज मुझे लगता है कि यदि मैं इस सम्पर्क में नहीं आता तो जीवन का सत्व, अमृत नहीं पा पाता। इस सम्पर्क के बिना शायद मेरा जीवन अधूरा था। इस सम्पर्क के बाद मुझे स्वयं को जैन धर्म के संबंध में बहुत कुछ नया सीखने-समझने को मिला। इस समुदाय में आज भी जिनशासन के गौरवशाली अतीत की झलक मिलती है। निश्चित ही मैं इस सम्पर्क से अभिभूत हूं। यह पूरी ईमानदारी से निकली हुई सच्चाई है।

20वीं सदी में जैन धर्म संघ के महानायक, श्रमण संस्कृति के उद्धारक, पोषक, धर्मयोद्धा, जैन शासन सिरताज, विशालतपागच्छाधिपति, व्याख्यानवाचस्पति परमपूज्य आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा के विचारों का ही प्रभाव है कि जिस समय मैंने पाठकों को विभिन्न सोशल मीडिया माध्यमों से उनके विचार प्रेषित करना प्रारम्भ किया था, उस समय मैंने लगभग दो सौ लोगों से इसकी शुरूआत की थी और आज 11 माह में ही ये विचार लगभग डेढ लाख से अधिक पाठकों तक पहुंच रहे हैं। और कई व्यक्ति जो परम तारक गुरुदेव से अपरिचित हैं, वे समय-समय पर उनके संबंध में पूछते रहे हैं।

इस समय उन परम तारक गुरुदेव का दीक्षा शताब्दी वर्ष, समारोह रूप में समुदाय द्वारा मनाया जा रहा है और यह दीक्षा शताब्दी समारोह अब अपने चरम पर है। इसका समापन गुजरात के भरूच नगर से लगभग 50 किलोमीटर दूर अरबसागर के किनारे गंधार तीर्थ की उसी ऐतिहासिक पुण्य धरा पर 14 से 24 जनवरी, 2013 को होने वाला है, जहां उन्होंने 100 वर्ष पूर्व बहुत ही संघर्षमय परिस्थितियों में संयम ग्रहण किया था, जैन भागवती दीक्षा अंगीकार की थी।

मैं स्वयं इस भव्यातिभव्य समारोह में जाने के लिए बहुत ही उत्सुक, आतुर और भावुक हूं। यदि वहां शामिल होने का मुझे अवसर मिला तो मैं निश्चित ही वहां के सारे कार्यक्रमों से आपको रूबरू करवाऊंगा और प्रतिपल के समाचार देने का प्रयास करूंगा, लेकिन तब तक मेरा प्रयास है कि मैं आपका उन परम तारक गुरुदेव के व्यक्तित्व और कर्तृत्व से परिचय करवाऊं। अतः कल से आप मेरी डाक इसी संबंध में पाएंगे। अब 24 जनवरी, 2013 के बाद ही उनके विचारों का सम्प्रेषण मैं आपको कर पाऊंगा। तब तक आप जानिए उस अद्भुद व्यक्तित्व, सख्सियत को।

अंत में परमपूज्य आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा के प्रखर प्रशिष्य, क्रान्तिकारी विचारों के संपोषक, श्रमण-संस्कृति के उन्नयन के लिए कृतसंकल्प, प्रवचन प्रभावक परमपूज्य आचार्य श्री विजय कीर्तियशसूरीश्वरजी महाराजा, विद्वानमुनि श्री रत्नयशविजयजी, यथानाम तथागुण मुनिश्री विवेकयशविजयजी आदि का आभार कि जिनके आशीर्वाद और श्री धनेशभाई संघवी, सूरत का आभार कि जिनके सहयोग से मैं यह कर पा रहा हूं।

विनीत,

मदन मोदी

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