गुरुवार, 6 दिसंबर 2012

श्री नवकार को पाना सहज नहीं है


जहां तक जीव ग्रंथिदेश पर आने योग्य कर्मस्थिति को प्राप्त नहीं करता, वहां तक तो जीव श्री नवकार महामंत्र को अथवा श्री नवकार महामंत्र के नमो अरिहंताणंइस प्रथम पाद को अथवा नमो अरिहंताणंइस पद के को भी नमो अरिहंताणंइस पद के के रूप में प्राप्त नहीं कर सकता। ज्ञानियों के इस कथन से फलित होता है कि श्री नवकार महामंत्र को पा सके, ऐसी योग्यता वाले जैनकुलों में जो जीव जन्म लेते हैं, वे प्रायः ग्रंथिदेश को पाने योग्य कर्मस्थिति की लघुता को पाए हुए होते हैं। जो जैनकुल, जैन आचार और जैन विचार की दृष्टि से हीन में हीन कोटि के बन चुके हों, तो भी इन कुलों में यदि श्री नवकार महामंत्र का स्मरणादि चालू हो तो ऐसे कुलों में भी प्रायः ऐसे जीव जन्म लेते हैं, जिनकी कर्मस्थिति ग्रंथिदेश को पाने योग्य लघुता को प्राप्त हो।

यदि कोई जीव नमो अरिहंताणंबोलने के आशय से भी बोलता है तो वह जीव कर्मस्थिति की इतनी लघुता को पाया हुआ है, ऐसा तो ज्ञानियों के कथनानुसार निश्चित रूप से कहा जा सकता है। इतना ही नहीं, जहां तक जीव नमो अरिहंताणइतना भी बोलता है अथवा नमो अरिहंताणंबोलने के आशय से भी बोलता है, वहां तक वह जीव चाहे जितने उत्कृष्ट कोटि के पाप विचारों में और चाहे जितने उत्कृष्ट कोटि के पापाचारों में प्रवृत बना हो तो भी वह ज्ञानावरणीयादि आठ कर्मों में से किसी भी कर्म को ऐसे रूप से संवित नहीं करता, जिसकी स्थिति एक कोटाकोटी सागरोपम की हो अथवा इससे अधिक हो! इसका अर्थ यह है कि उस जीव में अशुभ परिणाम ऐसे तीव्र भाव में प्रकट नहीं होते कि जिससे उस जीव को कोई भी कर्म एक कोटाकोटी सागरोपम की स्थिति का या इससे अधिक स्थिति का बंधे।

श्री नवकार मंत्र की प्राप्ति जैन कुलों में सामान्यरूप से सुलभ मानी जाती है, इसलिए जैनकुल में जन्म लेने वाले जीवों की बात कही। अन्यथा तो जो कोई भी श्री नवकार मंत्र को पाता है, उसकी कर्मस्थिति उत्कृष्ट कोटि की हो तो भी वह कर्मस्थिति एक कोटाकोटी सागरोपम से भी कुछ न्यून होती है; और वह जीव जो नवीन कर्मों का उपार्जन करता है, उन कर्मों की भी उत्कृष्ट से उत्कृष्ट कोटि की स्थिति एक कोटाकोटी सागरोपम से कुछ न्यून ही होती है। वह जीव इससे अधिक स्थिति वाले कर्म का उपार्जन तभी कर सकता है, जब वह जीव नवकार मंत्र के आंशिक परिचय से भी सर्वथा छूट जाता है। ग्रंथिदेश पर आने योग्य कर्मस्थिति की लघुता को पाए हुए सब जीव श्री नवकार मंत्र आदि को पाते हैं, ऐसा कोई नियम नहीं है। नियम तो यही है कि जो जीव जहां तक ग्रंथिदेश पर आने योग्य कर्म-स्थिति की लघुता को प्राप्त नहीं करता, वह जीव तब तक श्री नवकारमंत्र आदि को प्राप्त नहीं कर सकता।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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