यह आर्य देश है! जहां
आत्मा का विचार सतत चलता रहता था। आज आत्मा को लगभग भुला दिया गया है। देह के सुख
की अत्यधिक चिंता है और आत्मा का विचार भी नहीं है। जो आत्मा परलोक में से इस देह
में आई है और यह देह छोड कर परलोक में जाने वाली है, उसका विचार भी नहीं और जो देह यहां पडा रहने वाला है, राख में खाख होने वाला है, उसके सुख के लिए रात-दिन मेहनत! यह
कैसी दशा? आत्मा अमर है या देह? आत्मा अमर है और देह नाशवंत है।
फिर भी नाशवंत के पागलपन में आत्मा का क्या होगा, यह चिन्ता ही भुला दी गई है। अपना क्या और पराया
क्या, ऐसा विचार ही कहां है? जो अपना है उसे और जो पराया है उसे
वास्तविक रूप में समझने वाला पराये के मोह में अपने आत्म-हित का नाश करे, यह कहां तक उचित है? पराये का आकर्षण बढ जाए या निरुपाय
से आत्म-हित का हनन हो, इस परिस्थिति में भी
दुःख हुए बिना न रहे। सच तो यह है कि आपको अपना क्या और पराया क्या, उसका भान ही नहीं है। जो पराया है, उसे अपना मानकर भान
भूले हैं। इस कारण चौबीसों घण्टे दुनियावी कार्यों में लगे रहते हैं। आत्मा अपनी
होते हुए भी उसकी लेशमात्र भी चिन्ता नहीं है।
आप लोग जैन कुल में
जन्में हैं, इस बात को छोड देंगे, जैन धर्म के संस्कार छोड देंगे, तो ‘आप जैन हैं’, यह सिद्ध करने के लिए आप के पास
क्या साधन है? वास्तविक देव, गुरु और धर्म को आप पहचानते हैं? आज कई लोग कहते हैं कि सुदेव, सुगुरु और सुधर्म का विचार करने के
लिए हमारे पास समय नहीं है,
परन्तु
यह बात गलत है। अहंकार छोडकर कहो कि सुदेव, सुगुरु और सुधर्म का विचार करने के लिए समय नहीं है
या इच्छा नहीं है? दिन में गप्पे लगाने
में, पराई पंचायत करने में
तथा अनावश्यक बातों में कितना समय निकालते हैं? अनावश्यक बातों में जो समय चला जाता है, उसका आधा भी समय इस विचार के लिए
निकालने के लिए तैयार हैं?
‘ आत्मा-आत्मा ’ सिर्फ बोलते हो या हृदय से मानते
हो। यदि आत्मा को मानते होते तो, यह दुर्दशा होती क्या?
जैन अर्थात् आत्मा के
कल्याण के लिए कुदेव, कुगुरु और कुधर्म को
छोड सुदेव, सुगुरु और सुधर्म को
भजने वाला। परन्तु, आज तो सबकुछ चलता है, क्योंकि आत्मा का विचार ही नष्ट हो
गया है। देव-गुरु और धर्म के स्वरूप का ही खयाल नहीं है। स्वार्थ के लिए जिस-किसी
देव-देवी की पूजा कर लेते हैं। जैसे-तैसे वेशधारी को भी गुरु मान लेते हैं और
कुलाचारों के पालन में ही धर्म मान लिया जाता है। आत्मा का कल्याण करना चाहते हो
तो अपनी झूठी मान्यता को बदलो, ज्ञानियों ने जो स्वरूप बताया है, उसका अभ्यास करो और ज्ञानियों की आज्ञानुसार आचरण करने के लिए प्रयत्नशील बनो।
इससे आपकी आत्मा का कल्याण होगा और क्रमशः शाश्वत सुख का धाम ‘मोक्ष’ प्राप्त कर सकोगे।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा
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