जिसने चौदह पूर्व के
सार को प्राप्त कर लिया है,
उसका
मन क्या दुनियावी वस्तुओं की प्राप्ति में भटकेगा? और उसमें भी इस चौदह पूर्व के सार को साधन बनाने को
प्रयत्नशील होगा? दुनियावी वस्तुओं की
प्राप्ति, भौतिक सुख-सुविधाओं की
प्राप्ति के लिए कोई श्री नवकार महामंत्र की आराधना करता है, चौदह पूर्व के सार को माध्यम बनाता
है तो कहना पडेगा कि वस्तुतः उसे नवकार मंत्र का मूल्य ही समझ में नहीं आया है, हीरे के स्थान पर कंकर की
अभ्यर्थना कर रहा है, अक्षय सुख और परमानंद
के स्थान पर संसार चक्र में भटकाने, 84 लाख जीवयोनियों में रुलाने वाली अभ्यर्थना कर रहा है। जिसे चौदह पूर्व का सार
प्राप्त हुआ, वह यदि संसार में आने
वाले दुःखों से भागता रहेगा और संसार के सुखों के पीछे मंडराता रहेगा तो क्या वह
चौदह पूर्व के सार को, श्री नवकार को लजाता
नहीं है? वस्तु बहुत अच्छी है, परन्तु जिसे वह प्राप्त हुई है, उसे उसकी कीमत मालूम होनी चाहिए, अन्यथा वह बेकार और नुकसान करने
वाली भी साबित हो सकती है।
मिथ्यात्व ने जगत पर और
जगत के सुख पर ऐसी श्रद्धा करवा दी है कि मनुष्य उसे प्राप्त करने के लिए कोई भी
संभव पुरुषार्थ करने में कमी नहीं रखता। जिस-जिस में सुख माना, उसे जानने का मन कितना? देखने का मन कितना? प्राप्त करने का मन कितना? और, जिन्हें अपना माना उन्हें भी यह ज्ञान कराने और
दिखाने आदि का मन कितना?
मिथ्यात्व
द्वारा उत्पन्न श्रद्धा यदि यह कार्य करे तो जिन्हें श्री नवकार की प्राप्ति हुई
है, जिन्हें नवकार पर
वास्तविक श्रद्धा उत्पन्न हुई है, उन्हें क्या-क्या जानने, देखने, प्राप्त करने और
संभालने का मन होगा? श्री नवकार मंत्र में
जो भी है, वही जानने का, देखने का और प्राप्त करने का मन
होगा न? और, इससे अधिक अच्छी व सच्ची वस्तु
प्राप्त करने जैसी अन्य नहीं है, यह भी भाव पैदा होता है न? श्री नवकार मंत्र श्रेष्ठ क्यों है? उसमें ये बैठे हैं इसलिए? कौन? योग्यता और पुरुषार्थ
से श्री अरिहंत बने हैं वे! उसके फलस्वरूप सिद्ध भी बैठे हैं। उनकी आज्ञा का
अहर्निश पालन करने वाले आचार्य, उपाध्याय एवं साधु बैठे हैं। यह सब उसमें बिराजमान हैं, इसलिए नवकार मंत्र महान है! उन
पांचों को किए जाने वाले नमस्कार में यह सामर्थ्य है कि नमन करते-करते यदि भाव बढ
जाएं तो श्रेणी पर आरूढ हो जाए और नमन करने वाला केवलज्ञानी बन जाए, यह भी संभव है।
लेकिन, आज अधिकांशतः स्थिति अलग है। कुछ
लोग आकर कहते हैं कि श्री नवकार गिनने से ‘व्यापार बढ गया, आय बढ गई, बंगला नहीं था वह हो गया, मोटर नहीं थी वह आ गई,
अमुक
रोग नहीं मिटता था, वह मिट गया आदि।’ और कुछ तो यहां तक कह देते हैं कि ‘पुत्र नहीं था, वह हो गया।’ ऐसे जीवों की श्री नवकार पर श्रद्धा
में वृद्धि हुई या श्री नवकार पर की श्रद्धा दुर्लभ हुई? ऐसे जीव मुग्ध कोटि के नहीं होते। श्री नवकार जपते
हुए जो सुख उत्पन्न होता है, उसका जिसे अनुभव हो,
वह
तो कहता है कि ‘श्री नवकार मंत्र के
स्मरण से अब मैं परम् शान्ति का अनुभव कर रहा हूं, कोई भी दुनियावी पदार्थ मिले या चला जाए, अब वह मुझे परेशान नहीं कर सकता।
अब विषय-कषाय का उतना जोर नहीं रहा। अब तो बारंबार यही भाव आता है कि जल्द से जल्द
दुनिया के सभी संग छूट जाएं और मैं मोक्ष गति को प्राप्त कर सकूं।’ -आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा
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