शनिवार, 19 मई 2012

कैसे गुरु चाहिए?

आपको कैसे गुरु पसंद होंगे? आप एक श्रीमंत के रूप में यहां आए हो और यह कहें कि यह सेठ इस गांव का अगुआ है। बहुत बुद्धिशाली है। अनेक अच्छे काम इन्होंने किए हैं। इनके सहयोग से ही मन्दिर और उपाश्रय चलता है। बाजार में भी इनकी बहुत इज्जत है। अनेक प्रवृत्तियों के बावजूद भी यहां आते हैं, बडे पुण्यशाली हैं। यह सब सुनते-सुनते कभी आपको भी लगता है कि इस गुरु में भी कुछ बुद्धि है? अच्छे-बुरे का विवेक इनमें है? बोलने-चालने का भी ढंग है? मनुष्य को ये पहचान सकते हैं?
इसके बदले गुरु यदि कहें कि आपको इतनी सामग्री मिली है, इसलिए आप भाग्यशाली तो हैं ही, लेकिन मात्र लक्ष्मी के पीछे दौड रहे हैं, इसलिए मजदूर जैसे हैं। इस अपेक्षा से आपकी दशा दयनीय है। दुःख की बात तो यह है कि आपकी आत्मा अनंत शक्तिशाली होकर भी लक्ष्मी जैसी पर वस्तु के पीछे पागल बनी है। आत्मोन्नति के लिए विचार कीजिए और इन परकीय वस्तुओं की व्यर्थ ममता छोडकर उनका सदुपयोग कीजिए। आपने चाहे जितनी सम्पदा एकत्र की हो, पर एक दिन सब यहीं छोडकर जाना पडेगा, उस दिन आपका क्या होगा? ऐसा कहने पर कदाचित् आप उसी समय निश्चय कर लेंगे कि अब ऐसे स्थान पर या ऐसे गुरु के पास फिर नहीं आना। यह तो पथभ्रष्ट साधु हैं, इन्हें तो बोलना भी नहीं आता है। सामने कौन आदमी है, उसकी कैसी प्रतिष्ठा है, यह तो देखते ही नहीं। हम नहीं होते तो इनका क्या होता, गोचरी-पानी के भी लाले पड जाते। ऐसा-वैसा नकारात्मक सोच आप के मन में उभरता और शायद उल्टा-सीधा बोल भी देते।
खरी-खरी, साफ-सच्ची बात कहने वाले धर्म गुरु उन्हीं को अच्छे लगते हैं,जिनके अन्तर में धर्म समाया होता है या जो वास्तव में अपना आत्म-कल्याण करना चाहते हैं। जो दुनियावी जरूरतों के लिए धर्म का आवरण ओढते हैं अथवा दुनिया को धोखा देने के लिए धर्मात्मा होने का ढोंग मात्र रचते हैं, उन्हें सद्गुरुओं की बात अच्छी नहीं लगती। ऐसे आदमी यदि भगवान की पूजा भी करें तो क्या उनके आगे अपने पापों का सच्चा प्रायश्चित करेंगे? पूजा में भी वे प्रदर्शन व आडम्बर ही करेंगे।
ऐसे आदमी की लक्ष्मी अचानक चली जाए तो क्या होगा? उसकी कैसी हालत होगी?उसके हृदय में भयंकर दुःख प्रकट होगा। महादुर्ध्यान से उसका हृदय जलने लगे, ऐसी दशा होगी। लेकिन, यदि धर्म साथी होगा तो देव और गुरुदेव के पास ऐसी दशा को प्राप्त नहीं होगा और लक्ष्मी नष्ट होने पर भी आपकी आत्मा चिंता में नहीं पडेगी, बल्कि आप ऐसा सोचेंगे कि लक्ष्मी परथी, छोडी नहीं जाती थी, अपने आप चली गई, ऐसी आफत में भी धर्म आश्वासन देता है। धर्म का दृढ साथ हो तो आफत में और लक्ष्मी चली जाने पर भी अशान्ति होने के बजाय आत्मा की शान्ति में वृद्धि ही होती है।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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