मंगलवार, 22 मई 2012

लडना है तो आत्मा के लिए लडो


लडना है तो आत्मा के लिए लडो

अपने हक के लिए ही लडना हो तो आत्मा के अधिकार के लिए लडो। अपनी आत्मा में छाई हुई मलीनता को दूर करने के लिए लडो। आत्मा को जड कर्मों से मुक्त करने के लिए लडो। इसके लिए हो सके उतनी मेहनत कीजिए और अपनी पूरी ताकत से इसके लिए प्रयत्न कीजिए। क्योंकि कर्मों के कारण अनंत शक्तिशाली आत्मा आज बहुत ही बेहाल बन गई है। आपकी आत्मा अनंत शक्तिशाली है, लेकिन वह शक्ति कर्मों से दबी है। आत्मा के मूलभूत या स्वरूपभूत जो गुण हैं, वे ही आप के असली गुण हैं, उन्हीं के लिए आपको लडना है।

आप इस समय जो जीवन जी रहे हैं, वह पर पदार्थों के बल पर जी रहे हैं। आप पर पर-वस्तुओं की अधीनता कितनी हावी है? चाय, बीडी, पान के बिना नहीं चलता, यह कितनी पराधीनता है! कल्पना कीजिए कि यदि पूरे देश में चाय बन्द हो जाए तो कितने लोग चाय के बिना जंभाई और सिरदर्द के शिकार हो जाएंगे। दुनिया के अज्ञानी लोग ऐसी-ऐसी चीजों के गुलाम बन गए हैं कि उनके बिना वे जी नहीं सकते। यह तो एक उदाहरण मात्र है। दुनिया में ऐसी बहुत सी चीजें हैं जो आपको मोहित किए बिना नहीं रहती। लेकिन, वे सब परहैं, हमें पर को छोडना है और स्वमें स्थिर होना है। इसलिए लडना हो तो आत्मा के अधिकार के लिए लडना आवश्यक है, स्व में स्थिर होना है, ताकि जो आप पराधीनता का जीवन जी रहे हो, उससे मुक्त होकर स्वाधीनता का जीवन जी सको। 'पर' के साथ जब तक संयोग है, आपको दृष्टाभाव से रहना है,' पर' में आसक्त नहीं होना है।

संसार में रहने के बावजूद शान्ति से जीने का उपाय यही है कि पर-पदार्थ को अपना नहीं मानना और आत्मा के हित के लिए, अपने लिए जो प्रतिकूल हो, ऐसा आचरण दूसरों के प्रति नहीं करने का यथासम्भव प्रयत्न करना, ऐसी भावना के साथ यथाशक्य आचरण करना चाहिए। इससे अशान्ति खत्म होती है और शान्ति कायम होती है। पर-पदार्थ को अपना मानना, वे पदार्थ प्राप्त करने के लिए धमाल मचाना, उनके लिए व्याकुल होना, यह सब अधर्म है और पर-पदार्थ को पर व स्व आत्मा को स्व मानना, प्राप्त पदार्थों में संतोष रखकर स्व की साधना करते रहना, यह धर्म कहलाता है। अब आप के स्नेही-संबंधी आदि से क्या बात करोगे? यही कि यह सब अपना नहीं है। इस दुनिया में कुछ भी अपना नहीं है, आत्मा के साथ अच्छे-बुरे कर्मों के अलावा कुछ भी जाने वाला नहीं है, सब यहीं धरा रह जाएगा, क्योंकि वह 'पर' है। 'पर' को 'स्व' मानना भूल है। अब घर में आप ऐसा ही व्यवहार करें, जिससे सबको लगे कि आज आप के जीवन में कुछ परिवर्तन आया है, आपकी दिशा बदल गई है, यही दिशा-परिवर्तन आपकी आत्मा की दशा का परिवर्तन करेगा और वह शुद्ध स्वरूप को प्राप्त कर सकेगी।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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