मंगलवार, 29 मई 2012

घर में वैराग्य का वातावरण बनाएं!

आप अपनी संतानों को कैसी सलाह देते हैं? आप उन्हें कैसी सलाह देना पसन्द करेंगे? श्री वीतराग प्रभु के सेवक के रूप में सांसारिक राग को पुष्ट करने की सलाह देनी चाहिए या वैराग्य पुष्ट करने की सलाह? कदाचित् आप वैराग्य की सलाह नहीं दे सकें, उस स्थिति में सुगुरु आदि आपकी संतानों को वैराग्य की सलाह दें तो उसमें आपको कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। जिसे यह भी पसंद न हो, उसे वीतराग का सेवक या जैन कैसे कह सकते हैं?
श्री वीतराग प्रभु का सेवक वैराग्य का विरोधी नहीं हो सकता। आज दशा बहुत विपरीत है। वैराग्य के प्रति वैर-भाव का माहौल चारों ओर बना हुआ है। आपका परिवार इससे मुक्त है’, क्या आप ऐसा कह सकते हैं? श्री वीतराग का सेवक तो वैराग्य की वैरी-हवा भी अपने घर में घुस न जाए, इसके लिए सतत जागरूक और प्रयत्नशील रहता है। आपने इसका ध्यान नहीं रखा। अन्यथा, जैन परिवार में, श्री वीर के उपासकों, सेवकों के परिवार में वैराग्य विषयक बातें होती रहें और ऐसी बातें बहुत प्रफुल्लित भावना के साथ हों, इसमें कोई आश्चर्य जैसी बात नहीं, बल्कि यह स्वाभाविक बात है। लेकिन, दुर्भाग्य से आज ऐसी स्थिति नहीं है। आज तो श्री वीतराग के खास सेवक मानेजाने वाले परिवारों में भी वैराग्य की बात लगभग होती ही नहीं है। इतना ही नहीं कुछ परिवारों को तो वैराग्य के नाम से ही वैर हो गया है, ऐसा लगता है।
जो श्री वीतराग का सेवक है, वह तो पुत्र को कहता है कि सुसाधु के पास जाओ, सुनो और अच्छा लगे तो उनके साथ ही रह जाओ। यदि मोह के कारण मैं भी बाधक बनूं तो मेरी बात मत मानना, क्योंकि न तो तुम्हें मरने से बचा सकूं, ऐसी मुझमें शक्ति है और न ही ऐसी मेरी सामर्थ्य कि मैं तुम्हारी आत्मा का कल्याण कर सकूं। सुसाधु ही तुम्हें आत्म-कल्याण के मार्ग पर ले जा सकते हैं। तुम्हें संयम मार्ग पर जाते हुए देखकर यदि मुझे मूर्च्छा आ जाए तो भी अपने मार्ग पर दृढ रहना। यहां तो सब स्वार्थ का तूफान है। मैं तुमसे कहूंगा कि मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता, लेकिन तुम्हारे मरने पर भी संभव है कि कुछ समय बाद मैं मिठाई खाऊं। कदाचित् तुम पहले मर गए तो तुम्हारा दाह-संस्कार मुझे ही करना पडेगा और यह करने पर मैं खाना-पीना छोड दूंगा, ऐसा भी मत मानना। इस दुनिया में तो मुर्दों पर भी मौज मनाने में किसी को संकोच नहीं होता। कोई किसी के पीछे नहीं मरता। यदि ऐसा सोचते हो तो यह सही नहीं है, भ्रान्ति मात्र है।ऐसी बातें रोज-रोज होती रहे तो परिवार में प्रायः सभी को संसार भयंकर लगे। संस्कारी आत्माएं पाप से काँप उठती हैं। यह अनंत ज्ञानियों द्वारा कथित मार्ग है। इसे घर में स्थापित कर दीजिए, फिर आपको अपने घर में अलग ही प्रकार की आनंददायी शान्ति का अनुभव होगा। सांसारिक जीवन को दिव्य और उच्च कक्षा का बनाने के लिए घर में वैराग्य का वातावरण लाना होगा। वैराग्य रहित जीवन, जीवन नहीं है।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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