शनिवार, 15 मार्च 2014

मुक्तिदायक दान कौनसा?



दान धर्म की बात आने पर ऐसा विचार तो होता है कि दान अच्छा है, परंतु लक्ष्मी बुरी है, ऐसा विचार प्रायः नहीं आता! दान से अनंत आत्मा मोक्ष में गई, यह बात सत्य है, परंतु मुक्तिदायक दान-धर्म का आचरण कब होता है? तब ही, जब लक्ष्मी आदि पौद्गलिक पदार्थ परहैं और असार हैं, ऐसा निश्चितरूप से माना जाए। असार मानने के पश्चात् उस आत्मा को उसके भोग में आनंद नहीं ही आता है। द्रव्यदान में देने योग्य वस्तु का दान होता है, परंतु आज तो लक्ष्मी गले से ऐसी चिपकी है कि उसके देने से भविष्य में अधिक मिलेगी, ऐसा मान कर ही प्रायः दान होता है।


इसलिए आपको यह समझना होगा कि ममता के घटने पर ही सही रूप में, हाथ उदार बनेगा। यह बात सत्य है कि गृहस्थ सब लक्ष्मी को नहीं छोड पाता, परंतु उसका मनोरथ तो सब लक्ष्मी को छोडने का ही होता है! इसमें तो कोई शंका नहीं रहनी चाहिए। गृहस्थ आय के अनुसार दान करे, इसमें कोई दोष नहीं है, परंतु लक्ष्मी मात्र पर से ममता उतारने के प्रयत्न में तो उसे लगना ही चाहिए। क्योंकि, ममता के घटने पर ही धर्म का प्रेम बढता है। जो कचरा इकट्ठा हुआ है, वह खाली होगा तो स्वयं ही रुचि जागृत करने के लिए इतनी मेहनत नहीं करनी पडेगी।


आप देख सकते हैं कि सच्चे दानी को चाहे जैसी स्थिति में भी अपने पास का देने में जरा भी हिचक नहीं आती। इसीलिए कहावत भी है कि जल के अभिलाषी सूखने पर भी नदी के मार्ग को ही खोदते हैं’, क्योंकि वहां से पानी मिलने की संभावना है। यह सब कहने का तात्पर्य यही है कि गृहस्थावास पूरा ही त्याज्य है, यही आपकी समझ में आए। परंतु ध्यान में रखिए कि यह बात विषयासक्त आत्माओं की समझ में नहीं आती। क्योंकि वे आत्माएं उनके ऊपर विपत्तियां आने पर भी माता-पिता और बंधुओं को याद करती हैं, भाग्य को कोसती हैं, परंतु रहती तो वहीं की वहीं! वहां रहकर ममतावाली बन कर, विषयाधीन होकर और मेरा-मेराकरके ऐसा पाप बांधते हैं कि परिणाम में उन्हें नरकादि दुर्गति में ही जाना पडता है। दुर्गति में रहते हुए भी रोती-चिल्लाती रहती हैं। क्योंकि कर्मसत्ता के सामने किसी की कुछ नहीं चलती! कर्मसत्ता के समक्ष कोई भी दलील, प्रमाण या साक्षी नहीं चल सकती, मिथ्या होशियारी काम नहीं आती, उसे रिकार्ड बांचने की जरूरत नहीं होती। वह तो अपराध करने पर और उसके भोगने के समय पर शीघ्र ही कान पकडकर बिना किसी समन्स या वारन्ट के पकड ले जाती है। पीछे की व्यवस्था यों ही धरी रह जाती है। सचमुच, आजकल तो इस बात का विश्वास दिलाने वाली भयंकर बीमारियां भी मौजूद हैं तो भी आप इतने बहादुर हैं कि आपको दुष्कृत्य छोडने और सुकृत्य करने का विचार भी नहीं आता। यह जानकर आपकी बहादुरी पर सचमुच दया-करुणा आती है।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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