‘कषाय
आत्मा के भयंकर शत्रु हैं,
यह बात जिनकी समझ में आ जाती है, वे
कषाय पर विजय पाने के लिए उत्साहित होते हैं’ और ऐसी आत्माओं को अपनी
विषय-वासना पर विजय पाकर भगवान श्री जिनेश्वर देवों की आज्ञा के आधीन जीवन जीने का
प्रयत्न करना चाहिए। सम्यग्दर्शन गुण की प्राप्ति के योग से यह समझ में आ जाने के
बाद और भगवान श्री जिनेश्वर देवों की आज्ञा के आधीन ही मेरा जीवन कब बने, ऐसी
मनोवृत्ति प्रकट होने के बाद भी अप्रत्याख्यानी कषाय जीव को देश से भी विरति पाने
में अंतराय करने वाले होते हैं, यह कषायों की कितनी अधिक प्रबलता है? ऐसी
सम्यग्दृष्टि आत्मा स्वयं को अप्रत्याख्यानी कषायों का उदय होने पर भी तिर्यंच गति
के आयुष्य का उपार्जन नहीं करती, अपितु इन कषायों का उदय जोरदार बन जाए और
सम्यग्दृष्टि आत्मा भी असावधान हो जाए तो ये कषाय कदाचित अपने मित्र अनंतानुबंधी
कषायों को खींच लाएं और सम्यक्त्व का घात कर दें, यह भी संभव है।
क्षायिक सम्यक्त्व के स्वामी आत्मा को यदि अप्रत्याख्यानी कषायों का उदय चलता
हो, तो देश से भी विरति वह नहीं प्राप्त कर सकती, परंतु इन आत्माओं को
विरतिवाले जीवन के प्रति असाधारण कोटि का राग होता है। सब तो क्षायिक
सम्यक्त्ववाले जीव नहीं होते। अतः क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन गुण को प्राप्त आत्माओं
को अपने सम्यग्दर्शन गुण को निर्मल बनाने का प्रयत्न करते रहना चाहिए। इसके लिए
जैसे भगवान श्री जिनेश्वर देवों की सेवा और निर्ग्रंन्थ मुनिवरों की उपासना आदि
करते रहना चाहिए,
वैसे तत्त्वों के स्वरूप को जानने का प्रयत्न भी करते रहना
चाहिए तथा ‘कब मैं एकांतरूप से इस मार्ग को आचरनेवाला बनूं’, ऐसा चिंतन करते रहना
चाहिए। इस प्रकार सम्यग्दृष्टि आत्माओं को भी सावधान रहना चाहिए।
आत्मा में सम्यग्दर्शन गुण प्रकट होने पर, यह गुण कितना अधिक दुर्लभ है, यह
समझ में आए बिना नहीं रहता। इस गुण की महिमा उसके दिमाग में आए बिना नहीं रहती। इस
गुण के प्रताप से आत्मा पर कैसा और कितना अनुपम कोटि का अनंतकालीन उपकार होगा, यह
उसके ध्यान में आ जाता है। ये सब बातें ध्यान में आने पर जिनके सुयोग से यह गुण
प्राप्त हुआ हो,
उन परम उपकारी के चरण में सर्वस्व समर्पित कर देने के भाव
प्रकट हुए बिना नहीं रहते।
आप जिस सद्गुरु के सुयोग से सम्यग्दर्शन प्राप्त करें या जिस सद्गुरु के
प्रताप से आपको सम्यक्त्व का उच्चारण करने का मन हो, उन सद्गुरु की सेवा
में जो कुछ आपके पास हो,
सब सौंप देने का मन होता है क्या? आप
में से बहुतों ने सम्यक्त्व का उच्चारण किया होगा तो उस समय कुछ विचार आपके मन में
आया क्या? सम्यग्दृष्टि आत्माएं इस प्रकार का विचार अवश्य करती हैं।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी
महाराजा
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