रविवार, 2 मार्च 2014

आत्म-कल्याण का सुनहरा अवसर


अशुभ कर्म के उदय को सहन करने में भी बल चाहिए’, ऐसा जो समझता है, वह भय को सुनकर शिथिल कदापि नहीं होता! परंतु आज की स्थिति तो कुछ दूसरी ही है। आज यदि कोई सामान्य ज्ञानी आकर कहे कि छह महीनों में तुम भिखारी बनने वाले हो तो यह सुनकर आपकी क्या दशा हो? आपकी दशा तो आज से ही भिखारी जैसी हो जाए न? क्या धर्मी के रूप में यह दशा आपको शोभारूप लगती है? यह दशा धर्मी के लिए शोभारूप नहीं है। इतना ही नहीं, अपितु लज्जास्पद भी है। ऐसे समय में तो सम्यग्दृष्टि आत्मा को अपनी सब शक्ति का सदुपयोग कर प्रभुधर्म की आराधना में एकदम लग जाना चाहिए।

इससे समझ में आएगा कि सम्यग्दृष्टि आत्मा की दशा दूसरी ही होती है और होनी भी चाहिए। सामान्य दुनिया का भी यह स्वभाव है कि यदि कोई श्रीमंत लक्ष्मी का त्याग करता है तो उसके हाथ जोडे जाते हैं और यह धन्य है’, ऐसा भी कहा जाता है। परंतु यदि वह दिवाला निकालता है तो उसका ऐसा तिरस्कार किया जाता है कि वह बेचारा बाजार में भी नहीं निकल सकता और बहुत दिनों बाद निकले तो भी जातिवंत हो तो उसे मुंह नीचा ही रखना पडता है, ऐसी उसकी परिस्थिति होती है।

इसीलिए परम उपकारी ज्ञानी पुरुष कहते हैं कि पुण्य पूरा न हो, पेढी को ताला न लगे और कोई उठाकर फेंक न दे, उसके पहले ही चेत जाओ। अंत में तो सगे-सम्बंधी ही जंगल में ले जाकर रख देंगे। पिता के शव को अग्नि कौन देता है? कहो कि पुत्र हो तो वह देता है, उसमें भी बडा पुत्र हो वह देता है। अतः ऐसा प्रसंग आए, उसके पहले ही तुम त्याग करोगे तो दीपोगे, शासन को दीपाओगे और अनेक आत्माओं के लिए भी उपकार के कारणभूत बनोगे। अतः जागो और सावधान बनो! ऐसा करना तुम्हारा अनिवार्य कर्तव्य है, क्योंकि तुम कल्याण-मार्ग के अनुयायी हो। पुनः-पुनः ऐसी सामग्री मिलना बहुत ही कठिन है।

इसलिए सम्यग्दर्शन गुण को प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील बनो। अपने आत्म-गुणों को विकसित करने के लिए प्रयत्नशील बनो। इस समय आपके पुण्योदय से आपको स्वर्णिम अवसर मिला है और आत्म-धर्म की उपासना के लिए वांछित समस्त सामग्री आपको प्राप्त हुई है। सम्यग्दर्शन गुण आत्मा में प्रकट हुआ कि सद्गुरु के दर्शन और सद्धर्म के श्रवण की इच्छा प्रकट हुए बिना नहीं रहती। जहां तक संभव हो, सम्यग्दृष्टि जीव देवपूजन, गुरुवंदन एवं धर्म श्रवण किए बिना नहीं रहता। आप तो प्रतिदिन देवपूजन, गुरुवंदन एवं धर्म श्रवण करते ही होंगे न? इनमें अपने धन का और मन-वचन-काया के योग का जितना उपयोग हो, वही सच्चा उपयोग है, ऐसा आप मानते हैं न?-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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