विद्यार्थी पाठशाला से घर
जाता है तो क्या पढा हुआ भूल जाता है?
विद्यार्थी केवल
पाठशाला में ही पढता है या घर पर भी पढता है। व्यापारी दुकान से घर जाता है, तो क्या उसके दिमाग से व्यापार की सब बात निकल जाती है? चाहे वह घर पर व्यापार की बात न भी करे तो भी उसके दिमाग से
व्यापार की सब बात नहीं निकल जाती। तेजी का व्यापार किया हो और घर पर आराम से
समाचार पत्र पढते हुए मंदी होने के समाचार देखने में आएं तो व्यापार की याद आए
बिना रहेगी? दुकान पर गया हुआ गृहस्थ, घर पर क्या है,
कैसे है, यह भूल जाता है क्या?
नहीं। दुकान पर बैठा
हुआ व्यक्ति ‘घर की खबर है’,
ऐसा कहता है और घर पर
बैठा हुआ व्यक्ति ‘दुकान की खबर है’, ऐसा कहता है।
वहां घर-दुकान-संसार में जैसा
राग है, वैसा यहां धर्म में नहीं है, इसलिए जागृति टिकती नहीं है। धर्म के राग में कमी संसार के
सुख के प्रति गाढ राग के कारण है, यह आपको अनुभव होता है क्या? इन सबको सुरक्षित रखते हुए धर्म हो तो करना, ऐसा लगता है न?
परलोक में कौन उपयोगी
होगा, धर्म या संसार का सुख? आपको और नहीं तो इतना विचार तो आता है न कि ‘यहां से मुझे जाना है और जो मैंने यहां बहुत सारा इकट्ठा किया है, वह साथ आने वाला नहीं है?’ ऐसा विचार आए तो उस पर से राग घटे।
आपको ऐसी चिन्ता नहीं होती है
कि ‘यहां से जाना है,
और कहीं उत्पन्न भी
होना है, तो यहां से नरकादि में चला जाऊंगा तो मेरा क्या होगा? ऐसी चिन्ता जिसको होती है, वह पाप करते हुए भी रोता है। पाप करने से डरता है। आप विचार करें तो आपको भी
प्रतीत हो कि ‘इन सबके पीछे मैं दौडधूप करता
हूं, परन्तु यह सब यहीं रहने वाला है, जाना मुझे है और मैंने जो कुछ किया, उसका फल भी मुझे ही भोगना पडेगा! मैं पाप के उदय से बीमार
पडूं तो मेरा लडका अधिक से अधिक दवा आदि दे देगा, मेरी सेवा कर देगा, हाथ-पांव दबा देगा, परन्तु क्या वह मेरी पीडा ले सकेगा? सगे-संबंधी बहुत प्रेमी होंगे तो पास में बैठकर रो लेंगे, परन्तु मेरे पाप का फल तो मुझे ही भोगना पडेगा।’ उस समय यदि आप झुरते भी हों, कराहते हों और लडके से देखा न जाता हो तो भी वह क्या कर सकता है? आप थाली पर जीमने बैठते हैं तो अधिक न खाने की सावधानी
किसको रखनी चाहिए? खाने वाले को ही अधिक न खाने
की सावधानी रखनी पडती है न? अधिक खा ले, बीमार पडे और फिर कहे कि परोसने वाले ने ऐसा किया, तो क्या यह चल सकता है?
पेट दुःखने लग जाए तो
आपको पीडा होती है, दस्त लगने लग जाए तो आपको
परेशानी होती है या परोसने वाले को?
यह बात शीघ्र समझ में
आती है न? तो संसार का राग घटाइए और धर्म का राग बढाइए!
-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा
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