भगवान श्री जिनेश्वर देवों का
कोई वचन समझ में न आए और संशय पैदा हो जाए तो भी ऐसा लगे कि ‘मेरा ज्ञान कितना?
हमारी बुद्धि कितनी? मैं तो छद्मस्थ हूं,
मेरी समझ में न भी आए, परन्तु यह वचन भगवान श्री जिनेश्वर देवों ने कहा है, इसलिए यह वचन तो यथार्थ ही है।’ जिन किन्हीं आत्माओं को इस संशय आदि से बचना हो और मार्ग
में सुस्थिर रहना हो, उन्हें श्री जिनेश्वर देवों
के वचन की प्रामाणिकता की बात को इस तरह रट लेनी चाहिए कि किन्हीं भी संयोगों में
यह बात याद आए बिना न रहे। और चाहे जैसे आवेश में भी भगवान श्री जिनेश्वर देवों के
वचन की प्रामाणिकता में संशय पैदा न हो सके।
भगवान श्री जिनेश्वर देवों के
वचन की प्रामाणिकता के विषय में संशय होने लगा कि सांशयिक मिथ्यात्व आया ही समझिए।
जहां तक श्री जिनवचन की प्रामाणिकता के विषय में संशय पैदा नहीं हुआ, वहां तक शास्त्र वर्णित अर्थ के विषयों में संशय उत्पन्न
होने पर भी सांशयिक मिथ्यात्व आ गया,
ऐसा नहीं कहा जा सकता।
श्री जिनवचन की प्रामाणिकता के विषयों में संशय पैदा होना ही सांशयिक मिथ्यात्व
है। अपनी बुद्धि, कुशलता और समझ-शक्ति का गर्व
करने वाला सम्यग्दृष्टि जीव, इस मिथ्यात्व का स्वामी बन
जाए, यह संभव है।
किसी बात को न समझ पाने के
कारण शंका पैदा हो और फिर विचार करे कि भगवान ने ऐसा कहा है, परन्तु यह इस प्रकार घटित कैसे हो सकता है? तो मिथ्यात्व को लेने जाना पडेगा या आ ही जाएगा? अथवा ऐसा विचार करे कि भगवान असत्य नहीं कहते, परन्तु यह बात सत्य हो तो मेरे जैसे बुद्धिमान को समझ में न
आए, यह कैसे हो सकता है? ऐसा विचार संशय को स्थिर बनाता है और यदि इस विचार में परिवर्तन न आए तो
कदाचित यह विचार मिथ्यात्व को उदय में ला सकता है।
स्वरस-वाहिता (अभिमान युक्त
आग्रह) इतनी भयंकर वस्तु है कि महाज्ञानी और बुद्धिशाली सम्यग्दृष्टि आत्माओं को
भी यदि वे सावधान न रहें और स्वरस वाहिता के वश में हो जाएं तो यह उनको सांशयिक
मिथ्यात्व अथवा आभिनिवेशिक मिथ्यात्व के स्वामी बना देती है। सांशयिक मिथ्यात्व
में तो भगवान श्री जिनेश्वर देवों के वचन की प्रामाणिकता के सम्बंध में ही संशय
पैदा होता है, जबकि आभिनिवेशिक मिथ्यात्व में तो संशय नहीं, अपितु भगवान श्री जिनेश्वर देवों के वचनों के मिथ्यापन
विषयक निर्णय है। जबकि सम्यकदृष्टि का सोच यह होना चाहिए कि उन तारकों ने जो कुछ
प्ररूपित किया है, वह वैसा ही है। यदि वह मेरी
समझ में न आए तो यह मेरा दोष है। परन्तु,
भगवान श्री जिनेश्वर
देवों ने जो प्ररूपित किया है, वह सत्य ही है; इसमें शंका नहीं है।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी
महाराजा
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