श्री जिनागमों द्वारा वर्णित
तत्त्वों के स्वरूप के विषय में संशय और वह संशय भी इस प्रकार का कि जिस संशय के
कारण भगवान श्री जिनेश्वर देवों के वचन की प्रामाणिकता संबंधी संशय पैदा हो जाए, इसे सांशयिक मिथ्यात्व कहते हैं। जैसे कि ‘सब दर्शन प्रमाणरूप हैं या अमुक-अमुक दर्शन प्रमाणरूप है? इस प्रकार संशय;
अथवा ‘भगवान का यह वचन प्रमाणरूप है या नहीं? इस प्रकार का संशय,
सांशयिक मिथ्यात्व है।
वैसे तो, सम्यग्दृष्टि आत्माओं को भी कभी-कभी भगवान श्री
जिनेश्वर देवों द्वारा प्ररूपित सूक्ष्म अर्थों के विषय में संशय पैदा हो जाता है, परन्तु इतने मात्र से ही सम्यक्त्व चला जाता है, ऐसा नहीं।
ज्ञानावरणीय कर्म का उस
प्रकार का क्षयोपशम न हो अर्थात् सूक्ष्मार्थ समझ में न आए, अथवा कई विषय ऐसे ही हैं, जिन्हें भगवान श्री जिनेश्वर देवों के प्रति श्रद्धा से ही मानने पडते हैं।
अर्थात् कई बार सम्यग्दृष्टि जीव को भी संशय पैदा हो जाता है तो इसमें कोई आश्चर्य
नहीं। परन्तु, इतना संशय भी सम्यग्दृष्टि आत्माओं में पैदा हो जाए, तो इसका कारण क्या हो सकता है? इसका कारण यह है कि जब तक जीव मोहनीय की सातों प्रकृतियों
को सर्वथा क्षीण नहीं कर डालता, वहां तक जीव को क्षायिक
सम्यग्दर्शन प्रकट नहीं होता। जिन जीवों में सम्यक्त्व तो प्रकट हुआ, परन्तु यदि वह क्षायिक प्रकार का न हो तो उन जीवों में
मिथ्यात्व मोहनीय का प्रदेशोदय चालू रहता है।
जिन सम्यग्दृष्टि आत्माओं को
मिथ्यात्व मोहनीय का प्रदेशोदय चालू होता है,
वे सम्यग्दृष्टि आत्मा, सर्वविरति गुणस्थान को प्राप्त साधु हों तो भी उन्हें कभी
सूक्ष्मार्थ के विषय में संशय पैदा हो जाना संभव है। परन्तु वे जीव अपने इस संशय
को, भगवान श्री जिनेश्वर देवों के वचनों की प्रामाणिकता
के ज्ञान और श्रद्धा द्वारा सहज में दूर कर सकते हैं। सूक्ष्मार्थ आदि के सम्बन्ध
में हृदय में जब-जब संशय पैदा होने लगे तब-
‘तमेव सच्चं निस्संकं जं जिणेहि पवेइयं’
‘वही सत्य और शंकारहित है जो भगवान श्री जिनेश्वर देवों ने
प्ररूपित किया है’, इस वाक्य को और इस आशय वाले
दूसरे भी वाक्यों को याद करके, भगवान श्री जिनेश्वर देवों के
वचनों की प्रामाणिकता को हृदय में प्रमुख स्थान दिया जाए तो सूक्ष्मार्थ आदि के
सम्बन्ध में प्रायः संशय उत्पन्न नहीं हो सकता और कदाचित उत्पन्न हो जाए तो वह टिक
नहीं सकता। कोई भी विषय समझ में न आए और उसमें संशय पैदा हो जाए तो उसके निवारण का
सबसे अच्छा उपाय यही है कि ‘भगवान के वचनों की
प्रामाणिकता को याद किया जाए।’ ‘भगवान श्री जिनेश्वर देवों ने
जो कुछ कहा है, वह सत्य ही है’, ऐसा मन में विचारा जाए।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी
महाराजा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें