शुक्रवार, 5 अक्तूबर 2012

यहां ममता मारती है, आगे पाप मारेगा


आपने धर्म करते हुए भी धर्म को समझने का कितना प्रयत्न किया है? मिथ्यात्व को निकालना हो और सम्यक्त्व को पाना हो तो समझने की बहुत तैयारी चाहिए। यदि धर्म को समझा हो तो ऐसा अनुभव होना चाहिए कि, ‘मेरे पास इतना सारा है, फिर भी मैं महारंभ में क्यों फंसा हूं? खाते खुटे नहीं, तो फिर संतान को इसमें क्यों डालूं? इतनी अधिक संपत्ति मैंने क्यों रख रखी है? सदुपयोग कर इसे कम करूं तो मुझे क्या आपत्ति है? मुझे सम्पत्ति कम करनी हो तो भगवान ने सदुपयोग के बहुत से स्थान बताए हैं।इस प्रकार विचार करते हुए यदि यह लगे कि सम्पत्ति न रखने से कठिनाई में पड सकता हूं तो सम्पत्ति रखने का विचार विवशता से करना पड सकता है, परन्तु मन को इसमें लिप्त न होने दूं, ऐसा लक्ष्य रखा जा सकता है।

आपके पैसे मुझे काटते नहीं हैं और आप दुर्गति में जाएंगे तो भुगतना आपको ही पडेगा, परन्तु चूंकि आप यहां विश्वास करके आए हैं, अतः मुझे सच्ची बात कहनी चाहिए, इसलिए कह रहा हूं। यदि आपको ऐसा लगे कि मुझे परिग्रह रखने का मन होता है, वह आवश्यकता से नहीं, अपितु ममता से; तो विचार करें कि मैं वीतराग देव और निर्ग्रंन्थ गुरु का उपासक हूं; देव और गुरु-दोनों त्यागी हैं; तो भी मैं क्यों परिग्रह को पकडे बैठा हूं? मेरी ममता क्यों नहीं मिटती। मेरी ममता मिटे, इसके लिए मैं बिना मन के भी सदुपयोग करने लगूं!ममता कहती है कि रहने दे!तब आपको ऐसा विचार करना चाहिए कि मुझे ममता निकालनी है, अतः मैं दान दूंगा।

सवाल यह है कि यह सब परिग्रह पाप है, ऐसा आपको लगा है? पाप लगे तो ऐसा अनुभव हो कि मनुष्य छोटा और बोझ मोटा! गधे पर विशेष भार लादा जाए तो वह बैठ जाता है, परन्तु इस परिग्रह के बोझ से मैं व्याकुल क्यों नहीं होता? मैं तो अपनी आत्मा पर पाप का भार लादे जा रहा हूं। यहां ममता से मर रहा हूं और परभव में यह पाप छोडेगा नहीं!

आप धर्मक्रियाएं करते हैं, वे किसलिए? पापक्रिया अच्छी नहीं लगती; इसलिए न? पापक्रियाओं से छूटने के लिए धर्मक्रियाएं हैं, ऐसा यदि आपने समझा होता तो आप स्वयं विचार करते कि मैं इतनी सारी धर्मक्रिया करता हूं तो भी मुझे पाप क्रियाएं छोडने का मन नहीं होता। इसका क्या कारण है? यदि मुझे पाप अच्छा लगता ही रहेगा तो ये धर्मक्रियाएं मेरा निस्तार कैसे कर सकेंगी? ऐसा भी आप सोचते हैं क्या? यदि आप ऐसा भी अन्तर्हृदय से सोचने लगेंगे और मन में पश्चात्ताप करने लगेंगे तो आपके कषाय पतले पडने लगेंगे, जिससे आपकी दुर्गति रुक जाएगी, आपका मिथ्यात्व जाने लगेगा, कर्म कटने लगेंगे, सम्यक्त्व प्रकट होने लगेगा।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें