सोमवार, 22 अक्तूबर 2012

धर्मवाद ही कल्याणकारी


श्री जैन शासन, सम्यग्वाद को मानने वाला है। शुष्कवाद और विवाद, ये दोनों प्रकार के वाद अनर्थकारी हैं; केवल धर्मवाद ही कल्याणकारी है। ऐसा सूचित करके महापुरुषों ने यथासंभव शुष्कवाद और विवाद का त्याग करने का उपदेश दिया है। श्री जैन शासन के महापुरुष जहां तक संभव हो धर्मवाद के सिवाय और किसी वाद में उतरना पसन्द नहीं करते। श्री जैन शासन के मर्म को प्राप्त महापुरुषों को अनिवार्य कारण से किसी के साथ कुवाद में उतरना पडे तो भी वह उन्हें रुचिकर तो नहीं ही लगता है। दूसरी बात यह भी है कि ऐसा ही कोई प्रसंग आ जाए और अपनी शक्ति हो तो श्री जैन शासन के महापुरुष वाद में उतरकर सामने वालों को पराजित करें, यह हो सकता है। परन्तु, ‘मुझे अमुक को पराजित करना है।इस प्रकार कोई ध्येय श्री जैन शासन को प्राप्त करने वाले महापुरुषों का होता ही नहीं। श्री जैन शासन की अपभ्राजना न हो और अवसरोचित प्रभावना हो, ऐसा ही ध्येय जैन शासन के महापुरुषों का होता है। अतः इतरवादी को जीतने की आवश्यकता पड गई हो तो भी उसे उचित प्रकार से ही जीतना चाहिए, ऐसा मंतव्य जैन शासन के महापुरुषों का होता है। अर्थात् जहां तक अनिवार्य रूप से वाद के अनुचित प्रकार में उतरना आवश्यक न हो, वहां तक तो श्री जैन शासन के महापुरुष उस प्रकार के अनुचित वाद में उतरना चाहते ही नहीं। ऐसा होने पर भी जब वाद में उतरना पडता है, तब भी जैन शासन के महापुरुष वादी को वाद में समुचित रीति से जीतने का इतना अधिक आग्रह रखते हैं कि श्री जैन शासन के महापुरुषों की इस रीति को जानकर अन्य लोगों को भी आश्चर्य हुए बिना नहीं रहता।

देश-काल के नाम से भी भगवान श्री जिनेश्वर देवों के शासन से विपरीत नहीं बोलना चाहिए। भगवान श्री जिनेश्वर देवों के शासन के जिस सत्य को, जिस अवसर पर प्रकट करने की आवश्यकता हो, उस सत्य को उस अवसर पर देश-काल के नाम से छिपाना नहीं चाहिए। देश-काल के नाम से भी श्री जिनशासन से विपरीत बोलना या अवसरोचित सत्य को छिपाना, यह तो श्री जिनशासन का भयंकर कोटि का द्रोह ही कहा जा सकता है। कहने योग्य को कहे बिना न रहना और जो कहा जाए वह श्री जिनशासन के अनुसार ही हो, परन्तु वह इस ढंग से कहा जाए कि जिससे वह उपकारक बने; इसका नाम देश-काल आदि को देखकर बोलना है। जैन शासन के महापुरुष, उचित न लगने पर वाद में नहीं उतरते, परन्तु वाद में उतरना ही पडे तो वाद उचित रीति से हो, ऐसा आग्रह रखे बिना नहीं रहते। श्री जैन शासन की लघुता न होने पाए, इसके लिए शासन के महापुरुष अवसरोचित प्रतिकार करते हैं, परन्तु स्वयं अपनी ओर से शिष्ट जनों में अनुचित समझा जाने वाला कोई कार्य नहीं करते। ऐसा ही धर्मवाद कल्याणकारी हो सकता है।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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