मंगलवार, 14 जनवरी 2014

अयोग्य पात्र में अच्छी वस्तु भी खराब होती है!


व्यवहार में भी जिनकी जेब में पैसे नहीं होते हैं, वे जौहरी के यहां माल नहीं है,’ ऐसा नहीं कहते और कहें भी तो ऐसा कहने वाले मूर्ख ही कहलाएंगे न! और वे मूर्ख भी कैसे? कहना ही पडेगा कि वर्णन कर न सकें ऐसे! अगर जौहरी के वहां माल होता तो आकर के हमारे गले में नहीं पडता?’ ऐसा बोलने वाले हों तो उनको ऐसा कहने वाले भी अनेकानेक मिलेंगे कि कमनसीब! वह माल तो धनवान के गले में पड सकता है, परंतु तुम्हारे जैसे भिखारी के गले में नहीं ही पडेगा।कदाचित दुनिया में ऐसा बोलने वाले नहीं भी मिलें, परन्तु प्रभुमूर्ति में कुछ हो तो हम में भावना पैदा न हो? साधु में साधुता हो तो हम पर प्रभाव न पडे?’, ऐसा बोलने वाले उल्लू तो आज अनेक नजर आते हैं, क्योंकि उनकी छाती धड़का दे, ऐसा कहने वाले कम मिलते हैं।

इसलिए उन उल्लुओं को मनचाही बकवास करते हुए बंद करना हो अथवा उनकी ऐसी बकवास निष्फल बनानी हो तो आप समझें कि अभव्यों पर श्री तीर्थंकर देव का भी प्रभाव नहीं पडता। सूर्य जैसा प्रकाशक भी उल्लू आदि जाति को प्रकाश नहीं दे सकता, क्योंकि जाति-स्वभाव को सुधारने का उपाय ही नहीं है। अमृत जैसा दूध भी सर्प के कंठ में जहर बनता है। गाय-भैंस के मुंह में गए हुए घास का दूध बनता है और वही दूध सांप के मुंह में जहर बनता है? इसलिए अयोग्य पात्र में अच्छी वस्तु भी खराब होती है।

इस प्रकार समझकर जो कहते हैं कि मंदिर में जाते हैं, परंतु परिणाम (भाव) टिकते नहीं हैं।तो उन्हें समझाएं कि सामने वीतराग की प्रतिमा है फिर भी आपके परिणाम टिकते नहीं, उसमें दोष आपके स्वयं का अथवा आपकी अयोग्य प्रवृत्ति का ही है, क्योंकि चौबीसों घंटे जहां-तहां भटकने वाले, अनेक पदार्थों में आंख को गिरवी रखकर आने वाले और हृदय को हजारों स्थानों में गिरवी रखकर आने वाले पर परमात्मा की प्रतिमा भी क्या असर करे? आप जैसों को प्रतिमा पकड कर के भी किस प्रकार रखे? निश्चित करके तो आते हैं किमंदिर में से पांच मिनट में ही निकलना है, क्योंकि काम अनेक हैं।अब ऐसे जनों को प्रतिमा पकड कर रखे भी कैसे? मंदिर में आनेवाले कई लोग तो ऊंची छाती से दिखावटी रूप से ही नमस्कार कर चल देते हैं और मूर्ति के सामने देखते भी नहीं! तो फिर सोचें की ऐसी आत्माओं का परमात्मा की मूर्ति भी क्या करे? अरे! कितने ही तो चैत्यवंदन भी जल्दी-जल्दी बोल जाएं और दृष्टि भी भगवान सन्मुख नहीं हो, मानो पंजाब मेल चला! ऐसी आत्माओं पर मूर्ति क्या असर करे? स्वयं ही अयोग्य हैं और ऊपर से कहते हैं कि हम अच्छे, परन्तु इसमें कुछ नहीं है।वास्तव में तो यह उन पापात्माओं की धृष्टता ही है।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें