गुरुवार, 30 जनवरी 2014

अक्ल कम और सयानेपन का पार नहीं


द्वादशांगी भी मिथ्यादृष्टि के हाथ में मिथ्याश्रुत बनता है। अनुपयोगी बनती है और उल्टी हानि करने वाली बनती है। जो हीरा तिजोरी को शोभायमान करे, उसे ही मुंह में डाले तो? प्रतिष्ठा जाने के बाद प्रतिष्ठित व्यक्ति पोषक हीरे से अपना घात करता है। जिसकी प्रतिष्ठा जाने लगी, उसे बचाना हो तो उसके हाथ में से हीरे की मुद्रिका और जेब में से पैसे ले लेना और जिस कमरे में वह हो, वहां से कडा, खीला, रस्सी आदि निकाल लेना। अगर नहीं लिया जाए तो उन सभी का वह दुरुपयोग करेगा। उसी प्रकार मिथ्यादृष्टि में रहे हुए गुणों के लिए आनंद होगा, परंतु वह गुणवान है, ऐसी हवा का प्रचार बाहर नहीं होना चाहिए।

सम्यक्त्व के संबंध में जितनी वस्तु आवश्यक है, उतनी आएंगी तो ही सम्यक्त्व शोभित होगा, अन्यथा ओघदृष्टि से हम सम्यग्दृष्टिऐसा मानने से या कहने से कल्याण नहीं होगा। दृष्टि इतनी दीर्घ बननी चाहिए कि प्रत्येक वस्तु के परिणाम की परख हो सके। स्वयं जान न सके तो जानकार का अनुसरण करना चाहिए। आज तो अक्ल कम और सयानेपन का पार नहीं है। आज के मनुष्यों को किसी अच्छे-समझदार व्यक्ति के परामर्श की भी प्रायः परवाह नहीं है।

मैं तो गुणानुरागी!ऐसा पांच-पचास लोगों में कहे, वहां कोई समझाने जाए तो सारे ही लोग बोल उठें कि यह तो संकीर्ण दृष्टि वाले हैं। गुणराग का बचाव करना भयंकर है। जहां-तहां गुणराग के नाम से लेटने वालों का कभी भला नहीं होता। बालादपि हितं ग्राह्यं’, यह बात मान्य है। विष्ठा में पडे हुए फूल को कभी लोभवशात् या कभी लाचारी से उठाया, साफ करके उपयोग में भी लिया, परंतु कहां से लिया?’ ऐसा यदि कोई पूछे तो कहेंगे कि शौचालय में से?’ कहेंगे तो सुनने वाले आपको क्या कहेंगे? तुरन्त ही कहेंगे कि कृपा करके वह स्थान मत बतलाइए।सुनने वाले को फूल की सुंदरता का असर नहीं होता, परंतु दूसरा असर होता है। बुरे स्थान में पडी हुई वस्तु चाहे जितनी अच्छी हो, परंतु फिर भी उस स्थल की प्रशंसा तो कभी ही नहीं होती। उसकी प्रशंसा जो करे, वे अपने सम्यक्त्व को कलंकित करने वाले हैं। दुनिया में ऐसे अनेक दृष्टांत हैं। बगुले का ध्यान सराहा जाए?

कहावत है कि साहुकार की दो और चोरी करने वाले की चार। खूनी की नीडरता सराही जाए? सैंकडों जीव छटपटाते तडपते हों, फिर भी तलवार फिराए ही जाए, उसकी हिम्मत को सराहा जाए? हिम्मत, चतुराई आदि हैं तो गुण, परंतु अयोग्य में रहे हुए सराहे जाएं? नहीं ही। क्योंकि वेश्या की सुंदरता, चोर की चतुराई और शठ आदि की सफाई सराही जा ही नहीं सकती, क्योंकि, वे गुण भले रहे, परंतु स्थान गलत है।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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