सोमवार, 6 जनवरी 2014

मिथ्यात्व ही आत्मा को संसार में भटकाता है


मिथ्यात्व ही आत्मा को संसार में भटकाता है

मिथ्यात्व के साथ-साथ दूसरे पापों को छोडने का प्रयत्न भी अवश्य करना चाहिए। पाप-मात्र का सर्वथा त्याग किए बिना सच्चा धर्ममय जीवन पाना संभव नहीं है; और जहां तक एकांत धर्ममय जीवन प्राप्त न हो, वहां तक मुक्ति की प्राप्ति भी संभव नहीं है। ऐसा होते हुए भी अन्य पापों को छोडने में असमर्थ मनुष्य को मिथ्यात्वरूप पाप को छोडने का प्रयत्न तो अवश्य करना ही चाहिए।

पाप का सेवन अलग बात है और पाप की व्यामूढता दूसरी बात है। पाप का आचरण भी, पाप की व्यामूढता के कारण ही बहुत भयंकर फल देने वाला होता है। पाप की व्यामूढता मिथ्यात्व के कारण होती है। अतः यदि आप आज पाप का सर्वथा त्याग करने में असमर्थ हैं, तो भी मिथ्यात्व को छोडने का तो आपको अधिक से अधिक प्रयत्न करना ही चाहिए।

मिथ्यात्व की मौजूदगी में पाप के साथ खेलना, जहरीले सांप के साथ खेलने जैसा है और मिथ्यात्व की अनुपस्थिति में पाप के साथ खेलना, निर्विष बने हुए सांप के साथ खेलने जैसा है। इन दोनों के बीच का अंतर समझ में आता है? हिंसादि पाप खराब हैं, दुःख देने वाले हैं, छोडने योग्य ही हैं और इन्हें छोडे बिना सम्पूर्ण कल्याण होने वाला नहीं है; परंतु मिथ्यात्व तो ऐसा पाप है कि यह पाप को पाप के रूप में जानने भी नहीं देता। पाप में सुख है, ऐसी कल्पना पैदा करने की शक्ति मिथ्यात्व में है।

हिंसादिक दोष अधर्म कराते हैं, परंतु अधर्म करने लायक है, ऐसा तो मिथ्यात्व ही मनवाता है। जिसका मिथ्यात्व जोरदार होता है, उसे स्वयं भगवान श्री जिनेश्वर देव मिल जाएं, शास्त्रों का ज्ञान मिल जाए, तो भी उसका सच्चा फल उसे नहीं मिलता। जिनका मिथ्यात्वरूपी पाप चला जाता है और इससे जिनमें सम्यक्त्व गुण प्रकट होता है, ऐसे आत्मा कदाचित् उस समय हिंसादि पापों के सर्वथा त्यागी न भी हों, तो भी वे आत्मा अर्धपुद्गल परावर्तकाल से भी कम काल में मुक्ति अवश्य प्राप्त करते हैं।

एक बार मिथ्यात्व गया और सम्यक्त्व प्रकट हो गया, फिर कदाचित् मिथ्यात्व का उदय हो जाए, तो भी वह आत्मा अर्धपुद्गल परावर्तकाल से न्यून काल में मुक्ति को प्राप्त किए बिना नहीं रहता, क्योंकि फिर वह मिथ्यात्व अधिक समय टिक नहीं सकता, इससे यह बात सुनिश्चित होती है कि आत्मा को संसार में भटकाने वाले जो-जो कारण हैं, उन सब में मुख्य कारण मिथ्यात्व है। मिथ्यात्व के जाने के बाद, आत्मा को संसार में भटकाने वाले अन्य कारण, आत्मा के साथ लम्बे काल तक बने नहीं रह सकते। इसलिए सबसे पहले मिथ्यात्व को दूर करने, उससे बचने का प्रयास करना चाहिए।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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