शनिवार, 18 जनवरी 2014

शंका में से स्वच्छंदता का जन्म


सम्यग्दर्शन के दूसरे दोष कांक्षा इत्यादि हैं, परंतु शंका न हो तो अन्य दोष आने की संभावना प्रायः नहींवत् है। श्री जिनेश्वर देव तो जगत के जो पदार्थ जैसे हैं, उन पदार्थों को उस स्वरूप में प्रकट करने वाले ही विधि-विधान करते हैं। उन्होंने एक भी विधि-विधान ऐसा नहीं किया कि जो मूल गुण को हानि पहुंचाए, ऐसी निश्चल श्रद्धा हो, वहां दूसरे दोष आना प्रायः असंभव है। फिर भी मोह का आवेग तीव्र है। आ भी जाए! आज तो पांचों दोषों का साम्राज्य है। उसमें भी प्रथम शंका दोष तो बात-बात में है। इतना न करें तो गलत क्या? चाहे श्रावक हैं फिर भी किसी एक बर्ताव में हर्ज क्या? ऐसी-ऐसी शंका करने वाले अनेक पडे हैं।

जैनकुल में जन्मे इसलिए हम जैन कहे जाएं, परंतु जैन कहलवाने के लिए इतनी करनी आवश्यक क्यों?’ ऐसी शंका करने वाले भी पडे हैं! आत्मा को आत्मधर्म की आवश्यकता है, परंतु यह सारा बाह्याडंबर क्यों?’ ज्ञानी ऐसा नहीं कहते, परंतु यह तो सारा बाद में गढा गया है, हम चाहे जैसा बर्ताव करें, मन में आए वैसा बोलें, चलें, उसमें जैनत्व को हर्ज क्या? जीना दुनिया में है, तो दुनिया चले वैसे चलने में जैनत्व को हर्ज क्या? ऐसी-ऐसी शंकाएं, मिथ्यात्व को सजीव रखकर, आने वाले सम्यक्त्व को रोकने वाली हैं और जो आत्मा सम्यग्दृष्टि हो, उसके सम्यक्त्व का नाश करके मिथ्यात्व को लाने वाली हैं। ऐसी सरासर असत्य शंकाएं भी करने वाले पडे हैं!

इसमें तो निरी स्वच्छंदता है! परन्तु, उस स्वच्छंदता का जन्म गलत शंका में से होता है। क्रमशः गलत शंका बढे, फिर स्वच्छन्दता भी आए और सन्निपात भी आए! खोखलापन हो, इसलिए मिथ्यात्व घुस जाए। शंका के योग से भी पतनकाल होता है और पतनकाल के योग से भी शंका होती है। शंका के योग से भयंकर बर्ताव होता है। आज प्रायः धर्महीन बने हुए लोगों में से बहुत से जैनों की यह मनोवृत्ति है!

विशिष्ट क्षयोपशमादि के अभाव से जब तक आत्मा को स्वाभाविक वस्तु का खयाल नहीं आए, तब तक श्री जिनेश्वर देव के वचन में पूरी तरह विश्वास नहीं होता है, उसी का नाम है शंका। और इस शंका से हमें सावधान रहना चाहिए, इसकी छांया भी हम पर नहीं पडे, ऐसी सतर्कता की आवश्यकता है, अन्यथा हमें सम्यग्दर्शन के मार्ग से च्युत होते, भटकते देर नहीं लगेगी। एक बार भटक गए तो मिथ्यात्व हमें कितने गहरे गर्त में ले जाएगा और कितना भव-भ्रमण बढा देगा, कितना हमारा पतन होगा, यह नहीं कहा जा सकता। इसलिए जिनेश्वर देव के वचनों में कभी कोई शंका पैदा न होने पाए। यदि हमें जिज्ञासावश कुछ समझना है तो हमें ज्ञानी गुरुओं की निश्रा में जाना चाहिए।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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