शुक्रवार, 24 जनवरी 2014

गुणीजनों की निंदा और दम्भियों की पूजाः तौबा-तौबा!


यद्यपि शंका, कांक्षा और वितिगिच्छा में कमी है, फिर भी वस्तु का विवेक नहीं कर सकने वालों को सम्यग्दर्शन के चौथे दोष मिथ्यामतियों के गुणवर्णन और पांचवें दोष मिथ्यामतियों के परिचय में उलझते देर नहीं लगती। बहुत-से ऐसे लोग हैं कि गुणानुरागके नाम से मिथ्यादृष्टि की प्रशंसानामक चौथे दोष में फंस जाते हैं। गुणानुरागके स्वरूप को नहीं जानने वाले आज गाढ मिथ्यामतियों की प्रशंसा का जोर-शोर से प्रचार कर रहे हैं और वैसा करके वे स्व-पर के सम्यक्त्व को लूटने का धंधा चला रहे हैं। ऐसों के प्रताप से आज सच्ची गुणी आत्माएं निन्दित हो रही हैं और दंभी लोग पूजे जा रहे हैं। उन पापात्माओं का आज गुणानुरागके नाम से कोई कम उधम नहीं मच रहा है। गुणी के गुण को देखकर जिसे आनंद न हो, वह गुणानुरागी नहीं है।ऐसे वचनों का आधार लेकर घोर उधम मचाने वाले ऐसा कहते हैं कि जिस गुण से आनंद हो, उसकी प्रशंसा करने में नुकसान क्या है?’ परंतु इस प्रकार पूछने वालों को पता नहीं है कि जितनी वस्तु अनुमोदना करने योग्य हो, वे सारी ही सराहने योग्य नहीं होती है।जिसे देखकर हृदय में आनंद हो, उसे भी बाहर कहा नहीं जा सके, ऐसी अनेक वस्तुएं हैं।

जितनी वस्तुएं अनुमोदनीय हैं, उन सभी की प्रशंसा होनी ही चाहिए, ऐसा नियम नहीं है। बहुतों के गुण ऐसे भी होते हैं कि जिन्हें देखकर आनंद होता है, परन्तु उन्हें बाहर बतलाए जाएं तो बतलाने वाले की प्रतिष्ठा को भी धब्बा लगे। चोर का दान, उसकी भी कहीं प्रशंसा होती है? दान तो अच्छा है, परन्तु चोर के दान की प्रशंसा करने वाले को भी दुनिया चोर का साथी समझेगी। दुनिया पूछेगी कि, ‘अगर वह दातार है तो चोर क्यों? जिसमें दातारवृत्ति हो, उसमें चोरी करने की वृत्ति क्या संभव है? कहना ही पडेगा कि, ‘नहीं। उसी प्रकार क्या वेश्या के सौंदर्य की प्रशंसा हो सकती है? सौंदर्य तो गुण है न? वेश्या के सौंदर्य की प्रशंसा करने वाला सदाचारी या व्यभिचारी? वह गुण अवश्य है, परन्तु कहां रहा हुआ? विष्ठा में पडे हुए चंपक के पुष्प को सुंघा जा सकता है? हाथ में लिया जा सकता है? इन सब प्रश्नों पर बहुत-बहुत सोचो, तो अपने आप समझ में आएगा किखराब स्थान में पडे हुए अच्छे गुण की अनुमोदना की जा सकती है, परंतु बाहर नहीं रखा जा सकता।खराब व्यक्ति में रहे हुए गुण को गुणके रूप में बाहर रखा जाए, परन्तु उस व्यक्ति के गुण के रूप में बाहर न रखा जाए।इससे स्पष्ट होगा कि जो लोग गुणानुराग के नाम से भयंकर मिथ्यामतियों की प्रशंसा करके मिथ्यामत को फैला रहे हैं, वे घोर उत्पात ही मचा रहे हैं और उस उत्पात के द्वारा अपने सम्यक्त्व को फना करने के साथ-साथ अन्य के सम्यक्त्व को भी फना करने की ही कार्यवाही कर रहे हैं।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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