गुरुवार, 9 जनवरी 2014

अपनी बुद्धि काम न करे तो ज्ञानी की बात मान लें


व्यवहार में भी नीति है कि जब कोई बात मन में बैठती नहीं है, तब बुद्धिमान व्यक्ति की सलाह मान लेनी चाहिए।अगर व्यवहार में सामान्य व्यक्ति की सलाह मान लेते हैं, तो धर्म में अनंतज्ञानी श्री जिनेश्वर देव के वचन पर विश्वास रखने में क्या हानि है? और फिर जब खुद में समझने की शक्ति आएगी, तब तो सुनने की भी आवश्यकता नहीं रहेगी, इतना ही नहीं, बाद में तो पुस्तक का आधार भी नहीं लेना पडेगा, क्योंकि जब बुद्धि की सहायता से ही सब कुछ जानने की क्षमता आ जाए तो और किसी वस्तु की आवश्यकता ही कहां? किन्तु, जब तक इतनी क्षमता प्राप्त न हो, तब तक तो अनंतज्ञानियों द्वारा प्ररूपित तथ्यों को मानना ही चाहिए, ‘जो मेरी बुद्धि में बैठता नहीं है, वह हो ही कैसे सकता है?’ ऐसी शंका होनी ही नहीं चाहिए।

अज्ञानी के मन में समझने के लिए शंका अवश्य होती है, क्योंकि सारी बातें पूर्ण रूप से वह समझ न सके यह स्वाभाविक है। अज्ञान है तब तक थोडा समझ में आएगा, स्पष्ट होगा और बहुत कुछ समझना बाकी रहेगा, इसलिए अनंतज्ञानी के वचन भी मेरी बुद्धि स्वीकार करे तो ही मानूं’, ऐसा आग्रह कभी नहीं रखें।

दुनियादारी में ऐसा आग्रह नहीं चलता, आँखों से दिखने वाली वस्तु में होने वाले भिन्न-भिन्न परिवर्तनों को मानना पडता है, तो फिर अतीन्द्रिय पदार्थों को न मानने का आग्रह क्यों? एक वस्तु को हम अच्छी समझते हैं और वैद्य उसे नुकसानकारक कहें, ऐसा क्यों? वह वस्तु अच्छी नहीं है, नुकसानकारक है, ये बातें वैद्य समझता है, लेकिन हम नहीं समझते। जो वस्तु हाथ में है, अपनी आँखों से देखी जा सकती है, फिर भी उसके गुण-दोषों की शक्ति परखने का आधार अन्य लोगों पर रखना पडता है, तो फिर जो पदार्थ हमारी दृष्टि-मर्यादा के बाहर हैं, उनके गुण-दोषों को परखने का सामर्थ्य हमारे पास कैसे हो सकता है? जो वस्तु दिख पडती है, दृश्यमान है, इन्द्रियों को ग्राह्य है, उसके गुण-दोषों का भी कई बार पता नहीं चलता है, तो फिर अतीन्द्रिय पदार्थों के स्वरूप को तो हमारी दृष्टि कैसे ग्रहण कर सकती है? सभी पदार्थों के गुण-दोष स्वयं जानकर उसका अमल कर सकने का दावा क्या कोई कर सकता है? जगत में ऐसे कई पदार्थ हैं जो कि केवल आगमगम्य होते हैं। युक्तिगम्य पदार्थ भी अनेक हैं, कितु कुछ पदार्थ ऐसे हैं, जिनमें युक्ति नहीं चलती। अनंतज्ञानियों के वचन पर विश्वास रखने के अतिरिक्त और कोई मार्ग ही नहीं है। अन्यथा अज्ञानी को शंका न हो यह संभव ही नहीं है। वे तारक देव, जिनकी दृष्टि में राजा तथा रंक समान हैं, वे तारक देव जिनमें मेरे-पराए की भावना नहीं है, ऐसे परमतारक परमात्मा के वचनों में शंका करने का कोई कारण ही नहीं है। जो पुरुष योग्य हैं, उनकी बात मानने में क्या हर्ज है? -आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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