गुरुवार, 13 फ़रवरी 2014

सम्यक्त्वी का बर्ताव कैसा होता है?


सम्यग्दर्शन गुण के योग से आत्मा को सर्वप्रथम लाभ तो यह होता है कि वह आत्मा अच्छे और बुरे का निर्णय कर सकती है। ज्ञानीजन जिसे त्याज्य और खराब कहते हैं, वह सब उसे भी त्याज्य और बुरा ही लगता है। इसी प्रकार ज्ञानीजन जिसे अच्छा और स्वीकारने योग्य कहते हैं, वह उसे भी अच्छा और स्वीकार करने योग्य ही लगता है। ऐसी दृष्टि और ऐसी रुचि जीव में सम्यग्दर्शन गुण के कारण प्रकट होती है। यह इस दृष्टि और इस रुचि का बहुत बडा लाभ है। हम जो कुछ करते हैं, उसमें सचमुच अच्छा क्या है और सचमुच खराब क्या है, उसकी समझ हमें होती है? जो कुछ हमें अच्छा लगता है, उसे करने की इच्छा हमें होती है? अच्छा न भी हो सके तो भी अच्छा करने की तमन्ना तो बहुत होती है? और जो खराब लगता है, उससे दूर रहने का मन भी बहुत होता है? हमें जो कुछ खराब करना पडता है, उसके लिए भी हमें लगता है कि हम खराब कर रहे हैं? ‘मैं यह खराब करता हूं, मैं यह जो करता हूं, वह अच्छा नहीं है, ऐसा अनुभव होता रहता है?

बर्ताव की खराबी छठे गुणस्थानक पर पहुंचने पर नहीं होती है। आगे बढकर कहें तो, जीव जब सातवें गुणस्थानक में चल रहा हो, तब ही उसके बर्ताव में खराबी नहीं है, ऐसा कहा जा सकता है, क्योंकि सातवें गुणस्थानक में प्रमाद नहीं होता। उससे पहले खराबी हो सकती है। छठे गुणस्थानकवाली आत्मा प्रमाद का सेवन करे, ऐसा हो सकता है। परंतु, छठे गुणस्थानक में रही आत्मा उस प्रमाद को अच्छा मानती है? उसे सेवन-योग्य मानती है? नहीं। अब पांचवें गुणस्थानक में रहा हुआ जीव चाहे वह संसार छोडा हुआ हो या संसार में बैठा हो, संसार में वह रहता हो और संसार का सेवन भी करता हो तो भी उसका संसार में रहना और संसार का सेवन करना उसे अच्छा लगता है? नहीं, संसार में रहना और संसार का सेवन करना बुरा है, ऐसा वह जानता है। इसीलिए उसने जितनी विरति स्वीकार की है, उसका उसे आनंद होता है और स्वीकृत विरति के अभ्यास से परिपूर्ण विरति प्राप्त करने की उसकी अभिलाषा होती है।

चौथे गुणस्थानक में जीव विरति के रूप में तनिक भी विरति नहीं कर सकता। चौथे गुणस्थानक में रहे हुए जीव में अविरति ही होती है, ऐसा कहा जाता है। वह जीव अविरति का सेवन करता हो, परंतु मैं अविरति का सेवन करता हूं, यह अच्छा नहीं है’, ऐसा वह जीव मानता है। इस तरह, स्वयं जो कुछ भी प्रमाद करता है, जो कुछ भी अविरति होती है, उसे खराब मानने वाले जीव इस संसार में कितने हैं? ऐसे जीव संसार में थोडे ही होते हैं। जो कुछ अच्छा है, उसे ही अच्छा मानना और जो कुछ खराब है, उसे खराब ही मानना, कोई सरल बात नहीं है।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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