जैसी संगति करेंगे,
वैसे परिणाम आएंगे। मिथ्यात्वियों के संसर्ग में रहने पर
सम्यक्त्व जानेवाला और मिथ्यात्व आने वाला ही है। इसलिए मिथ्यामतियों का परिचय, प्रशंसा
और उनकी संगति दोषरूप है।
कदली, सीप, भुजंग
मुख, स्वाति एक गुण तीन।
जैसी
संगति बैठिए,
वैसो ही फल दीन ।।
कई लोग कहते हैं,
‘ऐसी अच्छी बातें आप सबको क्यों नहीं समझाते हैं?’ लेकिन, उन
लोगों को यह मालूम नहीं है कि अच्छी बातें भी योग्य व्यक्ति को ही बतानी चाहिए। हर
किसी को नहीं बताई जाती। मूल्यवान खजाना चोर-डाकू को नहीं दिखाया जाता। योग्य, भले
मनुष्य को भी अगर उसका ज्ञान न हो और अगर हम दिखाने जाएं तो उभय को नुकसान होने की
संभावना रहती है। सही है तो क्यों सबको न समझाएं? ऐसा घमण्ड नहीं रखना
चाहिए। बिना सामर्थ्य के अगर समझाने जाएंगे तो आप तो जब समझा सकेंगे तब समझाएंगे, लेकिन
वे आपको अवश्य कुछ समझा देंगे। सम्यक्त्व अति मूल्यवान है, इसलिए
उसकी रक्षा अति आवश्यक है,
यह बात अपने दिमाग में अच्छी तरह से दृढ कर लीजिए।
सम्यक्त्व की भावना बहुत दुर्लभ है। मूक, जड पदार्थ भी अगर आत्मा को
द्विधा में डाल सकते हैं तो फिर उन्मार्ग पर चलने वाले, बोलने
में समर्थ ऐसे चैतन्यमय प्राणी द्विधा में डाल दें तो क्या आश्चर्य? संपत्ति, मान-सम्मान, ऐशोआराम
आदि भी अगर आत्मा में द्विधा उत्पन्न कर सकते हैं, तो फिर वाकपटु मिथ्यामती
का परिचय क्या नहीं कर सकता? कई बार आप लोग कहते हैं कि मुक्ति चाहिए!
बिना विरति के मुक्ति की प्राप्ति संभव नहीं है, यह भी निश्चित है, ये
सब बातें शतप्रतिशत सही हैं... लेकिन ‘संयोग अनुकूल नहीं हैं...ऐसी
क्षमता नहीं है...’
ऐसे एक के बाद एक बहाने बताने लगते हैं। सच है या नहीं? मिथ्यामती
के परिचय के बिना भी अगर यह स्थिति है तो फिर जहां केवल उन्मार्ग का ही जमावडा है, ऐसे
मिथ्यामतियों के परिचय से क्या न हो?
उस स्थिति में दूषण को आने में कितनी देर लग सकती है? तथ्य
को समझने के बाद भी सिर्फ संयोगों को ही देखते रहें, संभव कार्य को भी
असंभव माना करें तो परिणाम क्या हो? लक्ष्मी की कामना करने वाला
संयोग न हो तो भी उसकी आकांक्षा क्या होती है? वह बाजार में जाएगा और
इधर-उधर से ताकत जुटाने का प्रयत्न करेगा। ऐसा कोई भी प्रयत्न यहां दिखाई देता है
क्या? सम्यग्दृष्टि प्राप्त न कर सकें यह संभव है, लेकिन प्रयास ही न
किया जाए, वह कैसे चलेगा?
चौबीस घंटे में विरति लेने के लिए कितना प्रयत्न किया जाता
है? मिथ्यामति के परिचय के बिना भी यह स्थिति है, तो परिचय से तो क्या
दशा हो सकती है? -आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा
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