बुधवार, 5 फ़रवरी 2014

अन्य दर्शन की प्रशंसा भी सम्यक्त्व में दोष है


अन्य दर्शनों की प्रशंसा भी सम्यक्त्व में दोषरूप बतलाई गई है। इतना ही नहीं, बल्कि उन दर्शनों के प्रति राग को दृष्टिरागके रूप में वर्णित कर सत्पुरुषों के लिए उसकी दुरुच्छेदता वर्णित की है। क्योंकि, वह राग आत्मा को असदाग्रही बना देनेवाला है। कुत्सित दर्शनों के प्रति राग, सद्वस्तु को समझने में महान अंतरायरूप है। इसी कारण से ऐसे दर्शनों के प्रति जो रागी, वे मिथ्यादृष्टि और उनके गुण की जो प्रशंसा, वह भी सम्यक्त्व का चौथा दोष है। इस दोष से बचने की भावना वाले को कुदर्शनों से अत्यंत ही सजग रहना चाहिए। अयोग्य स्थान में रहा हुआ गुण भी प्रदर्शन में रखने योग्य नहीं रहता। इस गुण को प्रदर्शन में रखने के लिए उसकी आधारभूत वस्तु भी साथ रखनी पडती है और उस आधारभूत वस्तु को साथ रखने से उस वस्तु को लेकर वह गुण भी दोषरूप भासित होता है। इसी कारण से उसकी प्रशंसा भी दोषरूप है। दुनिया में भी यह वस्तु सिद्ध है। दुनिया भी कहती है कि अयोग्य वस्तु की महिमा नहीं गाई जाती।और अगर कोई गाता हो तो उससे सचेत रहना चाहिए।

अयोग्य वस्तु की शक्ति की भी प्रशंसा नहीं की जाती। सौ बार धोया हुआ घी भले ही सारा सफेद हो, फिर भी अगर वह खा लिया जाए तो मार डाले, इसलिए किसी को देते हुए कहना ही पडे कि वह नाशक है, इसलिए बाहर लगाने के लिए है, परंतु मुंह में डालने के लिए नहीं है।उसी प्रकार आदमी बहुत होशियारहोते हुए भी अगर चोर हो, तो उसे कोई भी नहीं रखेगा। होशियार भले ही हो, परन्तु हाथ का साफ हो तो ही रखा जा सकता है। हाथ के मैले को तो नहीं ही रखा जा सकता है। श्रेष्ठी लोग बिना मुनीम के बेशक चला लें, परंतु हाथ के मैले को तो नहीं ही रखेंगे। सेठ समझता है कि निपट निठल्ला तो चोरी करने जाए तो भी पकडा जाए, परंतु होशियार तो जमा-उधार ठीक से करे, लेकिन बीच में से खा जाए उसका क्या हो? इससे व्यवहार में कहा जाता है कि चोर का भाई घंटीचोर’, मतलब कि चोर की प्रशंसा करने वाले को भी चोर का ही साथी समझना चाहिए। चोर को पेढी में घुसाकर उसकी चोरी में से भी वैसे लोग माल खाने वाले होते हैं। इसलिए ही कहना पडता है कि अकेले गुण पर मोहित न हो जाएं, परन्तु किसका गुण है? यह अवश्य पूछना और जानना चाहिए।

चाहे जितना होशियार घोडा हो, पर बिना लगाम के उस पर नहीं ही बैठा जा सकता है। हाथी पर बैठना अच्छा है, परंतु बिना अंकुश के बैठना यह भयंकर ही है। उसी प्रकार जैसे गुण अच्छा, परंतु स्थल देखे बिना प्रशंसा नहीं की जा सकती। अन्यथा अनर्थ हो जाए। इसी कारण से ज्ञानी कांक्षा को और मिथ्यामतियों के गुणवर्णन को भी दोष के रूप में बतलाते हैं।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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