सोमवार, 17 फ़रवरी 2014

कीचड़ में कमलवत्


जिन जीवों को ऐसा लग गया है कि मुझे संसार का कोई भी भोग नहीं चाहिए और एकमात्र मोक्ष ही चाहिए और ऐसा होने से जिन जीवों ने भगवान द्वारा प्ररूपित मोक्षमार्ग की आराधना का ही पुरुषार्थ अपनाया है, ऐसे जीव भी उसी भव में मोक्ष को प्राप्त कर लें, ऐसा अधिकतर नहीं होता। एकमात्र मोक्ष ही चाहिए, ऐसा मन में लग जाने के बाद और भगवान द्वारा प्ररूपित मोक्षमार्ग की साधना को अपनाने के बाद भी ऐसे जीवों को मोक्ष-प्राप्ति के पहले बीच में कुछ भव करने पडें, ऐसा संभव है। तब ऐसे मोक्षार्थी जीव मर कर कहां जाएं? अधिकतर देवलोक में जाते हैं।

देवलोक में इन जीवों को संसार के भोग का संग कितना गाढ होता है? वे कितना ही चाहें, परंतु भोग से अलग नहीं हो सकते। ऐसी स्थिति वहां होती है। परंतु, ज्ञानी कहते हैं कि ये जीव भोग में आसक्त दिखते हैं, फिर भी भोग की अवगणना करने वाले होते हैं और एकमात्र मोक्ष की ही आकांक्षा रखने वाले होते हैं। बाहर से ये भोग में आसक्त लगते हैं, परंतु अंदर से ये भोग की अवगणना करने वाले होते हैं। जो आत्मा एकमात्र मोक्ष की ही अर्थी होती हैं और मोक्ष के लिए ही पुरुषार्थ करने की इच्छा वाली होती हैं, ऐसी आत्माओं की यह बात है। ऐसी आत्माओं को भोग के संग में रहना पडता है, इसलिए वे भोग के संग में रहते अवश्य हैं, परंतु उनके मन में भोग की अवगणना का भाव होता ही है।

कीचड़ में पैदा होने वाला कमल पानी से बढता है, वह कीचड़-पानी के संग में रहता है तो भी वह कीचड़ और पानी से निर्लिप्त रहता है। वैसे ही सम्यग्दृष्टि आत्मा भोग भोगते हुऐ भी भोग से निर्लिप्त रहते हैं और एक मात्र मोक्ष की आकांक्षा में ही रमण करते रहते हैं। इसमें यदि थोडी भी भूल हो जाती है और भोग का संग करने लग जाते हैं, तो उत्तमता का भंग होने में देर नहीं लगती।

एकमात्र मोक्ष के ही अर्थी आत्मा देवलोक से भी पुनः मनुष्य लोक में आते हैं न? ऐसे आत्माओं को पुण्य के कारण मनुष्य लोक में भी संसार के भोग की उत्तम सामग्री मिलती है, परंतु देवलोक में जिन्होंने भोग की अवगणना की हो, वे मनुष्य लोक के भोगों से कैसे ललचा सकते हैं? उनका वश चले तो वे भोग का सर्वथा त्याग ही कर दें और भोग में रहना पडे तो भोग की अवगणना के भाव जीवित रखते हुए रहते हैं।

इस प्रकार देव के और मनुष्य के थोडे भव करके वे मोक्ष में चले जाते हैं। श्रावकों को भी संसार के भोग का एकांत निस्पृह भाव इस प्रकार से संभव हो सकता है। नहीं तो श्रावकों के लिए मोक्षायैव तु घटतेकहा गया है, वह संगत नहीं होता।-आचार्य श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा

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